मां, गुजराती चादर दे दे!
मैं 'फ़ादर' सा बन जाऊं!
जनता अपने राष्ट्र की
स्वामियों, बापुओं सा आदर दे दे!
अंग्रेज़ों सा व्यापारी बन कर,
तोड़ूं-फोड़ूं और मारूं-काटूं
विदेशी सूट पहन इतराऊं!
मां किसी 'गांधी' सी 'चादर' ओढ़ाकर
तस्वीरें, मूर्तियाँ मेरी सजवादे
मैं भी जिंदा लीजेंड, किंवदंती कहलाऊं!
मुग़ल, अंग्रेज़, हिटलर, कट्टर
सब से शिक्षायें ले लेकर
आतंक कर आतंकी न कहलाऊं !
मां 'धर्म' की बरसाती दे दे
बदनामियों सा न भीग जाऊं!
मां गुजराती चादर दे दे
'व्यापारों' के 'चरखे' चलवाऊं!
एक और 'गुजराती बाबू' कहलाऊं!
बापू को नोटों से भगवाकर
सबको भगवा-रंगवाकर
वोटों-नोटों पर छा जाऊं!
'मां' तुमसे भी दूर रह-रहकर
देश-विदेश घूम-घूम कर
अद्भुत सेवक, भक्त, लाड़ला कहलाऊं!
आदतों से ही नाम कमाकर
सुभाषण-कुभाषण दे देकर
नेता-अभिनेता, कलाकार सब कुछ बनकर
मोम की मूर्तियों में ढलकर
हर घर-मंदिर में छा जाऊं!
मां 'स्वधर्म' की चादर दे दे
'सेवकों' की 'रेबड़ियां' बटवाऊं!
रामराज्य की परिकल्पना दे देकर
विदेशों से कुछ ले-देकर
द्रोहियों को, दुश्मनों को भगवाऊं!
मां मुझको भी वैसी चादर दे दे
महान हस्तियों को भुलवाकर
इतिहास बदल-बदलवाकर
सारी दुनिया में केेेवल मैं महानतम हो जाऊं!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी रचना का अवलोकन करने वाले आज तक के सभी पाठकगण व व्यूअर्स को हार्दिक धन्यवाद इस हौसला अफ़ज़ाई हेतु।
रचना पर समय देकर अनुमोदन और प्रोत्साहित करने हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।
तीखा प्रहार करती पंक्तियाँ ,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
कृपया 15 वीं पंक्ति के आरंभ का संशोधित रूप पढ़िएगा :
// बदनामियों सा // = //बदनामियों से//
त्वरित टिप्पणियों द्वारा अनुमोदन और विचार साझा करने हेतु और पुनः स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब , मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।
कृपया 15 वीं पंक्ति के आरंभ का संशोधित रूप पढ़िएगा :
// बदनामियों सा // = //बदनामियों से//
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,"माँ खादी की चादर देदे, मैं गाँधी बन जाऊँ"
इन पंक्तियों से इस्तिफ़ादा करते हुए,अच्छी कविता लिखी आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, नमस्कार । बहुत ही उपयुक्त कटाक्षपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही कटाक्षपूर्ण और विचारोत्तेजक कविता । इशारों ही इशारों में सबकुछ कह दिया और समझने वाले समझ गए होंगे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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