बगल में आ बैठे मौलाना को देखकर उसका मन तल्ख़ हो गया. वैसे उन्होंने कुछ किया नहीं था, बस सर पर एक जालीदार टोपी लगा रखी थी. और मूंछ नहीं रख के एक लम्बी सफ़ेद दाढ़ी रखी हुई थी. उसने अपने आप को उस भीड़ में भी यथासंभव उनसे दूर रखने की कोशिश की.
जैसे ही उसका स्टॉप आया, वह मौलाना पर एक वक्र दृष्टि डाल कर उतर गया. "जाहिलपना तो इनके रग रग में भरा रहता है, जहाँ देखो वहीँ यह टोपी और दाढ़ी", वापस जाते समय उसके दिमाग में यही चल रहा था. अपने मोहल्ले के पास पहुंचा तो मंदिर में पूजा हो रही थी. वह जूते उतारकर अंदर घुस गया, पूरी श्रद्धा से उसने प्रभु के सामने शीश नवाया और बगल में बैठे पुजारी को भी प्रणाम किया. भगवा वस्त्र पहने पुजारी के माथे पर चंदन का टीका लगा था और शुभ्र धवल लम्बी दाढ़ी और मूंछ से उनका चेहरा उसे तेजमय लग रहा था. चलते समय पुजारी से प्रसाद लेकर उसने माथे पर लगाया और घर की तरफ निकल गया.
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
शुक्रिया जनाब विनय कुमार साहिब। दरअसल मैनें केवल जानकारी सांझा की थी, बस !
बहुत बहुत आभार आ मुहतरम जनाब समर कबीर साहब
जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
बहुत बहुत आभार आ तेज वीर सिंह जी, सही कह रहे हैं, इनको बदलना बहुत कठिन है. शुक्रिया
बहुत बहुत आभार आ मोहम्मद आरिफ साहब इस विस्तृत टिपण्णी के लिए. दरअसल समाज में लोगों के दिमाग में इस तरह से चीजें बैठा दी जाती हैं कि उसे दूसरे मज़हब की हर चीज बुरी लगने लगती है. और यह हर कौम के साथ लागू होता है, ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें, शुक्रिया
बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, इस विस्तृत टिपण्णी और जानकारी के लिए शुक्रिया.यहाँ बात इसकी नहीं है कि मूंछ क्यों नहीं रखते, बात इसकी है कि अपने मज़हब की चीज सही और दूसरे मज़हब की चीज गलत लगती है
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। बेहतरीन लघुकथा।कुछ लोग जन्म जात घृणा लेकर पैदा होते हैं। वे कभी नहीं बदलते।
आदरणीय विनय कुमार जी आदाब,
बहुत ही ज्वलंत और सामयिक विषय पर आपने बड़ी ईमानदारी और साहस के साथ क़लम चलाई जिसके लिए आपकी बेबाकी की जितनी प्रशंसा की जाय कम है । आज हमारे देश में यही सबकुछ चल रहा है । एक वर्ग विशेष के प्रति इतनी घृणा कभी नहीं देखी गई जितनी नई सत्ता के उदय के साथ इन चार सालों में देखने को मिली । आख़िर क्या कारण है कि एक वर्ग इतना हिंसा और मॉब लिंचिंग का शिकार हो गया । कुछ कट्टरवादी संगठन गाजर घास और कुकुरमुत्तों की तरह वजूद में आ गए हैं जिनका पेशा हिंसा हो गया है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
एक अहम विषय व.कथानक पर अहम कथ्य सम्प्रेषित करती उम्दा लघुकथा हेतु हार्दिक बधाइयां आदरणीय विनय कुमार साहिब। दाढ़ी के साथ क्लीन मूछें रखने के पीछे कई स्वास्थ्य संबंधी व सुविधा संबंधी व अन्य कारण हैं। जैसे नाक व मुंह में बालों के प्रवेश अवरोध व बज़ू अदा करने में सुविधा आदि। सादर।
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