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जीवन में लड़ाते हैं क्यों यार गड़े मुर्दे - गजल

२२१/१२२२/२२१ /१२२२


इस द्वार  गड़े  मुर्दे  उस  द्वार गड़े मुर्दे
जीवन में लड़ाते हैं क्यों यार गड़े मुर्दे।१।


हर बार नया  मुद्दा  पैदा तो नहीं होता
देते हैं  सियासत  को  आधार गड़े मुर्दे।२।


मौसम है चुनावी क्या राहों में खड़ा यारो
लेने जो  लगे  हैं  फिर  आकार  गड़े मुर्दे।३।


भाता नहीं जिनको भी याराना जमाने में
लड़ने  को  उखाड़ेंगे  दो  चार  गड़े  मुर्दे ।४।


इतिहास जिसे कहते कुछ और नहीं है वो
शब्दों  में  बदल  रखता  सन्सार गड़े मुर्दे ।५।


बिष खूब हैं फैलाते नफरत की हवा पाकर
कर दें  न  कहीं  हम  को  बीमार  गड़े मुर्दे।६।


वो शख्स बड़ा लेकिन फितरत से गलत ही है
जो  खोद  के  लाता   है   हर   बार  गड़े  मुर्दे।७।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 21, 2018 at 1:20pm

आ. भाई अजय जी सादर अभिवादन ।स्नेह के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 21, 2018 at 1:15pm

आ. भाई सुरेंद्र जी, प्रशंसा के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 21, 2018 at 1:13pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति , प्रशंसा और मार्गदर्शन के लिए आभार । यथोचित बदलाव कर दिया है देखियेगा ।

Comment by Ajay Tiwari on September 20, 2018 at 5:51pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई. गढ़े > गड़े

Comment by नाथ सोनांचली on September 20, 2018 at 4:19pm

आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बढ़िया मुजाहरा किया आपने। शैर दर शैर मुबारकबाद और बधाई। 

"मसला" शब्द गलत है। ध्यान दीजियेगा। सादर

Comment by Samar kabeer on September 20, 2018 at 3:08pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

हर बार नया मसला पैदा तो नहीं होता'

इस मिसरे में 'मसला' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "मसअला",मिसरा बदलने का प्रयास करें ।

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