कुछ क्षणिकाएं :
पिघलती नहीं
अब
अंतर्मन की व्याकुलता
आँखों से
स्वार्थ का चश्मा
सोख लेता है
सारा दर्द
................
सीख लिया है
आँखों ने
खारा पानी पीना
संवेदनहीन
हो गया है
वर्तमान
.........................
झीलें नहीं होती
भावों की
आँखों में
मैच कर लेता है
हर अंतरंग का रंग
कांटेक्ट लेंस
.....................
मुद्दत हो गई
खुद से मुलाकात हुए
शायद
उनसे बिछुड़ने का
अंजाम है ये
पलक से गिरा
लकीरों पे
किसी याद का
मुकाम है ये
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीया babitagupta जी सृजन आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का आभारी है।
आ. भाई सुशील जी, बेहतरीन क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिक बधाई ।
क्षणिकाओं के माध्यम से मानवीय सम्बेदनाओं को प्राकृतिक चीजों द्वारा बताना,बेहतरीन रचना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सुशिल सरजी।
आदरणीय विजय निकोर जी , सादर प्रणाम , प्रस्तुति पर आपकी मन मुदित करती प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सुरेन्दर नाथ सिंह जी सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा एवं सूक्ष्म त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने का दिल से आभार। मैं अभी एडिट करता हूँ सर. हार्दिक आभार।
आदरणीय नरेंद्र चौहान जी सृजन को मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीया राजेश कुमारी जी सृजन आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया का आभारी है।
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