For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सो न सका मैं कल सारी रात

सो न सका मैं कल सारी रात

कुछ रिश्ते कैसे अनजाने

फफक-फफक, रात अँधेरे

प्रात की पहली किरण से पहले ही

सियाह  सिफ़र  हो  जाते  हैं

अनगिनत बिखराव और हलचल

ढोते इस ढाँचे में बची हुई साँसें

बेतरतीब  बेकाबू  धकधक

सम्पूर्ण स्थिति का समीकरण करते

कितने कठोर वतसर बीत जाते हैं

तुम समय के संग, उन्मुक्त, आगे बढ़ गई

मैं भावप्रणव भावाकुल स्मृतियों से सराबोर

ओढ़े  उस रिश्ते की  छायाओं के धब्बे

समय के शिकंजे में बने भीतर रेगिस्तान में 

समय  के  साथ ... समय  का  न  रहा

मेरे  लिए  किसी   एक ज़माने  से

"रघुवीर  रीति  यही  चली आई

प्राण  जाई  पर  वचन  न  जाई"

तुम्हारे लिए "कहे" का मूल्याँकन

शायद नव-आविष्कृत गणित-सा रहा 

"मैं कभी नहीं बदलूँगी"... उफ़्फ़ 

सोचता  हूँ,  सचाई  है  यह

या  है  मेरे  सूने  में  काँप  रहा

रुक-रुक कर आत्मा में बहता-सा लगता

आज जो फिर कराह रहा मेरा भोला विश्वास

उलझनों की थाहों में अधभूली लोरी गाते

हृदय के इन निर्जन प्रसारों में आज फिर 

थपथपा रहा हूँ मैं रिश्ते के पिंजर को क्यूँ

जब  छाती  में  है  रुधिर  से फूटता  रहा

कल सारी रात कोई रुँधा हुआ उच्छवास 

हाँ ... सो सका न मैं कल सारी रात

                   ---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 828

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2018 at 8:16pm

नरेंद्र सिंह चौहान जी क्या आप प्रतिक्रिया के बाद फिर पलट कर कभी नहीं देखते क्या,, क्योकि अगर देखते तो अब तक अपने में आवश्यक बदलाव ला चुके होते। सादर

Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2018 at 8:15pm

आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बहुत ही बेहतरीन सृजन, वाह वाह, मजा आ गया पढ़के। बधाई देता हूँ आपको। बहुत खूब।

Comment by Samar kabeer on September 25, 2018 at 3:32pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत ही सुंदर,भवपूर्ण,प्रभावशली रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

'या  है  मेरे  सूने  में  काँप  रहा'

इस पंक्ति में 'सूने'--या "सीने"?

Comment by Samar kabeer on September 25, 2018 at 2:34pm

जनाब नरेंद्र सिंह चौहान जी,

//खुब सुन्दर रचना//

आपने ज़िद पकड़ ली है कि मंच की परिपाटी के हिसाब से नहीं चलेंगे?

Comment by narendrasinh chauhan on September 23, 2018 at 5:12pm

खुब सुन्दर रचना

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 23, 2018 at 10:08am

संबंधों की दास्तां बयां करती बेहतरीन शिल्प की रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 23, 2018 at 9:02am

हार्दिक बधाई आदरणीय विजय निकोरे जी।बेहतरीन रचना।

उलझनों की थाहों में अधभूली लोरी गाते

हृदय के इन निर्जन प्रसारों में आज फिर 

थपथपा रहा हूँ मैं रिश्ते के पिंजर को क्यूँ

जब  छाती  में  है  रुधिर  से फूटता  रहा

कल सारी रात कोई रुँधा हुआ उच्छवास 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service