2122 2122 212
गर अदब में नाम की दरकार है।
तो ग़ज़ल कोई नयी दरकार है।।
तू किसी को देख ले ग़मगीन तो।
आँख में तेरी नमी दरकार है।।
प्यार करते हो मुझे तुम भी अगर
इक नज़र चाहत भरी दरकार है।।
एक दूजे पे हमेशा हो यकीं।
दोस्ती में बस यही दरकार है।।
ये अँधेरा दूर होगा एक दिन।
इल्म की बस रौशनी दरकार है।।
बात सच्ची ही कहें हर शेर में।
शाइरी में ये रही दरकार है।।
तुम बढ़ा लो सोच का अब दायरा।
यह बदलते वक्त की दरकार है।।
अपने अंदर झाँकना है गर तुम्हें।
एक गहरी ख़ामुशी दरकार है।।
दर्द-ए-दिल में दे सके सबको सुकूँ।
कर सकूँ वो शाइरी दरकार है।।
अब दिखावा ही सभी करते पसंद।
कब किसी को सादगी दरकार है।।
चाहिए कोई न कोई साथ तो।
हो खुशी या ग़म यही दरकार है।।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह जी वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...
आ. भाई सुरेंद्र जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।
जी बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अजय तिवारी जी। सादर नमन।
जी टाइपिंग की ग़लतिया सुधार दी है और एक ङो मिसरे बदल दिए है। बहुत बहुत आभार आपका।
जनाब सुरेन्द्र इंसान जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें,बाक़ी जनाब अजय तिवारी जी बता ही चुके हैं ।
आद0 सुरेन्दर इंसान जी सादर अभिवादन। अच्छे अशआर बन पड़े हैं। कुछेक जगह कुछ बदलाव से और बेहतर हो जाएगी ग़ज़ल, इस बाबत गुणीजनों की इस्लाह को संज्ञान में लेना होगा। बधाई स्वीकार कीजिये
आदरणीय सुरेन्द्र जी, अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
प्रेम सच्चा और हो एतबार भी > प्रेम भी सच्चा हो और हो एतबार
बात सच्ची ही कहे हर शेर में - कहे >कहें
दर्द-के-दिल में दे सके सबको सुकूँ > दर्द-ए-दिल में दे सके सबको सुकूँ
साथ होना चाहिये कोई न कोई > ये मिसरा बह्र में नहीं है > साथ होना चाहिए कोई तो/भी हो
हो खुशी या ग़म यही दरकार है > एक ग़म या इक ख़ुशी दरकार है
सादर
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