For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत-इसलिये हैं नैन घायल आँसुओं से तर-ब-तर-बृजेश कुमार 'ब्रज'

किसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर?

फिर किसी सुनसान कोने
चीख कोई जो उठी
रात की खामोशियों में
रातरानी रो उठी
दानवी अट्टाहसों में
आह तड़पी घुट गई
टूटती साँसें समेटे
लड़खड़ाती वो उठी

इस कदर बरपी क़यामत
बन गई मातम सहर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर

है नहीं जग में ठिकाना
आँख जाए नीर का
मोल कोई दे सकेगा
वेदना का पीर का
जिस नज़र पे था भरोसा
घात भी उससे मिली
हाथ ही अंधे हुये तब
धर्म क्या शमशीर का

आग बरसे आसमां से
तप रही है रहगुजर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 869

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2018 at 3:20pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत बहुत आभार..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2018 at 3:19pm

स्वागत संग आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2018 at 3:19pm

आदरणीय डा.साहब आपका धन्यवाद...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 7, 2018 at 3:17pm

आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन स्वीकारें..उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर

Comment by TEJ VEER SINGH on October 7, 2018 at 10:42am

हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार जी। बेहतरीन गीत।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2018 at 4:49pm

आ. भाई ब।जेश जी आच्छा गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on October 6, 2018 at 1:23pm

आदरणीय बृजेश जी बहुत उम्दा सृजन बधाई कुबूल कीजिए

Comment by Samar kabeer on October 6, 2018 at 11:48am

जनाब बृजेश जी आदाब,अच्छा गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 10:54pm

आदरणीय रामबली जी आपका स्वागत है..छंदों पे अभी कोशिश ही की है..पहले बंध की पहली पंक्ति में वो गलती से हो गया..मात्रा पतन की आज़ादी नहीं होती इसका इल्म है..सुधार करता हूँ। लेकिन कहीं इस छंद को मुक्तक के रूप में भी पढ़ा है।सादर

Comment by रामबली गुप्ता on October 4, 2018 at 10:46pm

भावों के हिसाब से तो बहुत ही सुंदर रचना हुई है आद० भाई बृजेश कुमार जी किन्तु छंद के शिल्प के हिसाब से इसमें अभी बहुत काम है। सर्वप्रथम छंदों में मात्रा पतन की छूट नही होती। गीतिका छंद के शिल्प में भी कई जगह भटकाव मिला आपकी रचना में। गीतिका छंद का प्रत्येक पद निम्न प्रकार चलेगा-

गीतिका शुभ गीतिका शुभ गीतिका शुभ गीतिका

दो दो पदों की तुकांतता होनी चाहिए तथा मात्रा पतन मान्य नही है।

 हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service