कोई 'रोज़ी-रोटी' और 'नोटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था; तो कोई 'वोटों' और 'ओटों' के लिए तरस रहा था या बिक रहा था। आम जनता जानती थी कि हर मुकाम पर कहीं न कहीं 'दाल में कुछ काला' है क्योंकि सालों से उसने सब कुछ देखाभाला है; अपने आपको वक़्त-व-वक़्त 'चोटों' से उबारा है। तरक़्क़ी के मुद्दों पर नेता व अधिकारी सब अपनी-अपनी वफ़ा की सफाई पेश कर दूसरों पर छींटाकशी कर, अपनी ही जगहंसाई कर चिल्ला रहे थे; विरोधी बिलबिला रहे थे!
"ये डील नहीं .. मतलबियों को ढील है! .. राजनीति नहीं .. चील है! चीट है ... ढीठ है, बस ढीठ है!"
"ये व्यापार नहीं .. भ्रष्टाचार है ... व्याभिचार है ग़रीब जनता, संस्कृति और संस्कारों के साथ! धर्म-निरपेक्ष जनतंत्र के साथ!
"लोकतंत्र नहीं... यह तो तानाशाही है! .. हर उद्योगपति ही शाही है! दूजी ग़ुलामी की आगाही है!"
आम जनता अपने अंदर तनिक 'शक्ति' और 'जागरूकता' के संचार होने पर बस इतना ही बोल पा रही थी सड़कों पर, धरनों पर, नये थोपे गए क़ानूनों पर, घोषणाओं और योजनाओं पर!
"कान बंद कर लो, बोलने वालों को बोलने दो! इनको जान सको, तो जान लो! ..अब तो अपनी अक़्ल से काम लो! अंधवायु में ईमानदार मतदान से लोकतंत्र को प्राणवायु दो, बस!" भीड़ में से एक बुज़ुर्ग ने ज़ोर से चिल्लाकर कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
ये ढील नहीं , घेरे में और और लोगों को बाँध लेने की कोशिश है , उसके बाद , समय हो जाने पर कसने की कवायद होती है।
जाएगा कहाँ ? की स्थिति है , उन्हीं के लिए लाभप्रद।
बहुत सारगर्भित लघु ( बोध ) कथा ,
बधाई आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी , सादर।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ,बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।
मेरी इस रचना पर समय देकर प्रोत्साहक टिपप्णियों द्वारा अनुमोदन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब प्रदीप देवीशरण भट्ट
साहिब, जनाब समर कबीर साहिब और जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब और जनाब तेेेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। बेहतरीन कटाक्ष युक्त बढ़िया लघुकथा।
आ. भाई शेख शहजाद जी,अच्छी कथा हुयी है । हार्दिक बधायी।
//बहुत खूब //
जनाब प्रदीप भट्ट साहिब,इतनी छोटी टिप्पणी सोशल मीडिया पर देने का रिवाज हो सकता है,ये इस मंच की परिपाटी नहीं है,चूँकि ये सीखने सिखाने का मंच है, इसलिये यहाँ पहले रचनाकार को आदर पूर्वक सम्बोधित करते हैं फिर उसकी रचना की आलोचना या तारीफ़ की जाती है,उम्मीद है आप इस परिपाटी में सहयोग करेंगे,यही आपसे निवेदन है ।
बहुत खूब
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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