जंतर-मंतर चौराहे पर भीड़ जमा हो चुकी थी। कुछ नियोजित, तो कुछ टाइम-पास थी। कुछ नुक्कड़-नाटिका कलाकार मुखौटे पहने हुए थे, कुछ आम नागरिकों और कुछ नेताओं के वेश में थे। एक वृत्ताकार जमावड़े में संवादों और अदायगी का जंतर-मंतर शुरू हुआ :
"तुरपाई हो नहीं सकती, भरपाई हो नहीं सकती
कपड़े फट सकते हैं, चिथड़े उड़ सकते हैं!
सुनवाई होती है, कार्यवाही सदैव हो नहीं सकती!"
ज़मीन पर पड़ी बलात्कार-पीड़िता और लिंचिंग-पीड़ित के शवों को घेरते हुए दो कलाकार बोले।
"घटना बहुत दुखद है!" एक चौड़ी छाती वाला नेता-वेशधारी और तोता-मुखौटाधारी बुरा सा मुंह बनाकर पीड़ा दर्शाकर बोला।
"..पर अफ़सोस, घुटना ही सुखद है!" अपनी छातियां पीटते कुछ कलाकार सड़क पर बैठे हुए बोले।
"मुुुलाक़ात, मीडियापा, राजनीति, बदज़ुबानी हो सकती है,
अपहरण, लिंचिंग, जुतयाई, जगहंसाई हो सकती है,
निवारण, निराकरण तो क्या एफआईआर ही हो नहीं सकती!"
हाथों में तख़्तियां लिये हुए अपने सिर दायें-बायें हिलाते हुए कुछ कलाकार एक वृत्त बना कर घूमे।
" घटना बहुत दुखद है!" तोता-मुखौटाधारी नेता ने मीडियाकर्मी बने कलाकारों से कहा उनके कैमरों के सामने अपनी भावनाएं ज़ाहिर करते हुए।
".. पर अफ़सोस, मन ही मन घुटते रहना ही सुखद है! घटना का प्रचार करना आत्मघातक है!" ताज़े अख़बार की ताज़ी नकारात्मक ख़बरों वाले पृष्ठ लहरा कर कुछ युवा सिर झुकाकर घूमे।
"टूटना-फूटना, लुटना-लूटना, रोना-रुलाना, चीखना-चिल्लाना,
सब फ़िल्मी शूटिंग सी अदायगी हो सकती है, जनता एकत्रित हो सकती है,
सेल्फ़ी, वीडियोग्राफी, पुरस्कृत साहित्य-रचना हो सकती है,
नैतिकता, सामाजिकता, आध्यात्मिकता आ नहीं सकती, छा नहीं सकती!"
सड़क पर जमा भीड़ की भावभंगिमाओं में उभरती पीड़ाओं की ओर बारी-बारी संकेत करते हुए नुक्कड़-नाटिका कलाकार बोले।
"घटना बहुत ही दुखद है!" तोता-मुखड़ाधारी कुछ नेता अब समूह स्वर में बोले।
"... घोर अफ़सोस, तभी तो कुल मिलाकर घुटते रहना ही सुखद है!" कुछ बुज़ुर्ग कलाकार रंगीन टोपियां और तौलियां सड़क पर तिरस्कृत करते हुए फैंक कर बोले!
भीड़ में सन्नाटा था, सबके दिमाग़ में घन्नाटा था या घण्टे बजने लगे थे। भावुक होती भीड़ की ओर बाहें फैला कर सवालिया सुर में कलाकार बोले:
"जांच-समीतियां गठित हो सकतींं हैं, न्याय-रक्षित नहीं कर सकतींं हैं,
दोषी जी सकते हैं, निर्दोष फंस सकते हैं, बयान-फैसले बिक सकते हैं,
घुटन हो सकती है, पीड़ायें, जलन-तपन हो सकती है, अश्रुधारा बह सकती है!"
किंतु वे सभी तोता-मुखड़ाधारी नेता अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से मुख़ातिब होकर बोले :
"वास्तव में घटना बेहद दुखद है!"
"...पर अफ़सोस, उन सब पीड़ितों का घुटना ही सुखद है!" कर्मचारियों ने बेबस से होकर एक-दूसरे से कहा!
अब हाथ में तिरंगे और सद्भावना-संदेश की तख़्तियां लिये सभी नुक्कड़-नाटिका कलाकार भीड़ के केंद्र में एक साथ आकर बोले :
"बदनामी हो सकती है, नाकामी हो सकती है, तानाशाही हो सकती है,
जम्हूरियत जी नहीं सकती, इंसानियत हो नहीं सकती
हैवानियत छा सकती है, भौतिकता छा सकती है, धरती कराह सकती है,
घटनायें दुखद तो हैं, पर देशवासियो संविधान-सम्मत
स्वयंसेवा, आत्मोन्नति, आत्मोत्सर्ग ही सुखद है!"
इन शब्दों के साथ ही सभी कलाकार अंतिम फोटोग्राफी के लिये पोज़ बनाने लगे और भीड़ में मोबाइल फ़ोनों के कैमरे पहले से अधिक हरक़त में आ गये। तालियां भी गूंज रहीं थीं और ट्रैफिक जाम के वाहनों के हॉर्न्स के साथ पुलिस वालों की सीटियां भी। फिर भीड़ बिखरने लगी।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर अनुमोदन और विचार सांझा करते हुए मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
साहिब, मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा और जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
आ. भाई शेख शहजाद जी, सुंदर कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय शेख उस्मानी जी, बहुत ही अच्छी लघुकथा हुई है। ऐसा ही होता रहा है हमारे समाज में। विरोध जताने के बहाने ही सही, लोगों को स्वयं को लोकप्रिय बनाने का बहाना मिल जाता है। बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।आज के हालात की बखिया उधेड़ती सुंदर लघुकथा।
स्नेहिल प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब और आदरणीय मुह़म्मद आरिफ़ साहिब।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
इस लघुकथा के बारे में क्या जाय , जितना कहा जाय कम है । इस लघुकथा में पूरे प्रजातांत्रिक विरोध का चित्रण सशक्त काव्यात्मक नारों में बयाँ हो गया । हार्दिक बधाई इस लाजवाब लघुकथा के लिए ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,लघुकथा अच्छी है मगर तवालत बहुत हो गई है,बधाई स्वीकार करें ।
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