इस ग़ज़ल के साथ ओबीओ परिवार को नवरात्री की शुभकामनाएं.. जय माता की
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
हर कली में देवियों का वास हो
पत्थरों को दर्द का अहसास हो
फिर कोई अवतार आये भूमि पे
निश्चरों को मृत्यु का आभास हो
लाज की मारी न रोये द्रोपदी
अब नहीं वैदेही को वनवास हो
पीर की तासीर जाओगे समझ
लुट चुका कोई तुम्हारा खास हो
बात इतनी सी समझते क्यों नहीं
घात मिलती है जहाँ बिस्वास हो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
Uttam sarjnaa aadrniy
उचित है आदरणीय समर जी..बिलकुल सुधार किया जा सकता है..मैं कोशिश करता हूँ।
"दर्पण" में कोई छूट नहीं है,इसे 'दर्पन' इसलिये लिखा जाता है कि उर्दू में "ण" नहीं होता ।
आपको सिर्फ़ मतले का ऊला और दूसरे शैर में क़ाफ़िया बदलना है,जो आपके लिए मुश्किल नहीं,प्रयास करें ।
आदरणीय समर जी सादर प्रणाम...दरअसल जिस तरह दर्पण और दर्पन में न और ण की छूट होती है मुझे लगा कि एक ही वर्ग समूह (उष्म व्यंजन) से होने के कारण स और श में भी छूट होगी।इसीलिए प्रयोग किया है।सादर
आभार संग नमन आदरणीय तेजवीर सिंह जी..सादर
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन मतले में क़ाफ़िया दोष है,जो आगे के अशआर में भी है 'श' के साथ "स" क़ाफ़िये नहीं चलेंगे ।
हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी। बेहतरीन गज़ल।
पीर की तासीर जाओगे समझ
लुट चुका कोई तुम्हारा खास हो
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