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धरती का बोझ- लघुकथा

शोक सभा चालू थी, हर आदमी आता और मरे हुए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी बात शुरू करता और फिर प्रशासन को कोसते हुए अपनी बात ख़त्म करता. बीच बीच में लोग उस एक व्यक्ति की भी तारीफ़ जरूर करते जिसने कई लोगों को बचाया था लेकिन अपनी जान से भी हाथ धो बैठा था.
उधर कही आसमान में रूहें एक जगह बैठी हुई जमीन पर चलने वाले इस कार्यक्रम को देख रही थीं. उनमें अधिकांश तो उस एक रूह से बहुत खुश थीं जिसने उनके कुछ अपनों को बचा दिया था लेकिन एक रूह बहुत बेचैन थी. उसे यह बात जरा भी हजम नहीं हो रही थी कि मंच पर आने वाले उसका तो जिक्र ही नहीं कर रहे हैं.
तभी वहां मौजूद लोगों में से कुछ लोग आपस में बात करने लगे "खैर हुआ तो बहुत ही बुरा लेकिन कम से कम वह नेता भी इसमें मर गया, धरती का बोझ कम हो गया".
ऊपर सभी रूहों ने उस एक रूह की तरफ देखा, अब वह सबसे नजरें चुरा रही थी.


मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on October 29, 2018 at 4:49pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम बलराम धाकड़ जी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए

Comment by Balram Dhakar on October 29, 2018 at 2:36pm

आदरणीय विनय कुमार जी, बहुत अच्छी लघुकथा। 

व्यंग्य!

कटाक्ष!

प्रभावी प्रस्तुति!

ढेरों बधाइयाँ!

Comment by विनय कुमार on October 29, 2018 at 1:10pm

इस प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार आ कल्पना भट्ट जी

Comment by विनय कुमार on October 29, 2018 at 1:10pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए

Comment by विनय कुमार on October 29, 2018 at 1:09pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए

Comment by विनय कुमार on October 29, 2018 at 1:09pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम तेज वीर सिंह जी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए

Comment by विनय कुमार on October 29, 2018 at 1:08pm

बहुत बहुत आभार आ मुहतरम शेख शहज़ाद उस्मानी जी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए

Comment by Samar kabeer on October 26, 2018 at 11:43am

जनाब विनय कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 26, 2018 at 12:00am

अवसरवादी नेताओ पर करारा वार| अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय,जिसके लिए हार्दिक बधाई|

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 25, 2018 at 7:12pm

आ.विनय जी, अच्छी व्यंग्य कथा हुयी है । हार्दिक बधाई ।

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