मुझे विरासत में मिलीं
कुछ हथौड़ियाँ
कुछ छेनियाँ
मिला थोड़ा-सा धैर्य
कुछ साहस
थोड़ा-सा हुनर
मैं तराशने लगा
निर्जीव पत्थरों को
बना दिया
सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ
जो कई अर्थों में
श्रेष्ठ हैं
ईश्वर द्वारा बनायी गयीं
सजीव मूर्तियों से
जिन्हें नहीं पता रिश्तों की मर्यादा
नही कर पातीं ये भेद
दूधमुँही बच्चियों, युवतियों और वृद्ध महिलाओं में
काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती
विरासत में
मैं होता
एक न्यायाधीश
लिखता निर्विघ्न फैसला
उन बलात्कारियों का
और तोड़ देता निब को
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
सराहना हेतु दिल से आभार आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी.
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आपसे प्रतिक्रिया पाकर कविता सार्थक हुई, बहुत बात आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, उत्साहवर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया हेतु बहुत आभार।
बहुत खूब वाह वाह
आदरणीय जनाब समर कबीर साहब, सादर प्रणाम, आपको कविता पसंद आयी, लेखन सफल हुआ, उर्दू शब्दों के बारे जानकारी अल्प है इसलिए गलती हुई, मायनों के स्थान पर अर्थों लिखना क्या उचित होगा ? सुझाव दें तो मैं पोस्ट एडिट कर लेता हूँ ।
जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब,बहुत उम्दाअतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
' जो कई मायनों में'
इस पंक्ति में 'मायनों' कोई शब्द ही नहीं है,सहीह शब्द है "मा'ना" और इसका बहुवचन है "मआनी" देखियेगा ।
माननीय बागी जी आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो इस सुंदर अभिव्यकित के लिए
समसामयिक ज्वलंत मुद्दों और स्व-चिंतन पर बेहतरीन विचारोत्तेजक सृजन हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब इंजी. गणेश जी बाग़ी साहिब। निर्जीव मूर्तियों से कमतर सजीव पत्थर-दिल वाले आपराधिक प्रवृत्ति के नर-मानव पर बेहतरीन शब्द-बाण।
वाह आदरणीय बहुत ही सार्थक भावपूर्ण कविता का सृजन है..
हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी बागी साहब जी।बेहतरीन कविता।
काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती
विरासत में
मैं होता
एक न्यायाधीश
लिखता निर्विघ्न फैसला
उन बलात्कारियों का
और तोड़ देता निब को
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