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वाजिब हुआ करे था जो तकरार मर गया
आजाद जिन्दगी में भी इन्कार मर गया।१।
दोनों तरफ है कत्ल का सामान बा-अदब
इस पार बच गया था जो उस पार मर गया।२।
जीने लगे हैं लोग यहाँ खुल के नफरतें
साँसों की जो महक था वही प्यार मर गया।३।
सौदा वतन का रोज ही शासक यहाँ करें
सैनिक ही नाम देश के बेकार मर गया।४।
जो हक बयाँ का दोस्तो औजार था कभी
आमद की लालसा में वो अख़बार मर गया।५।
वैसे नहीं था यार तनिक बोझ उसको पर
बाकी दिनों की दौड़ में इतवार मर गया।६।
जिसमें बसे हैं भेड़िये आदम के रूप में
खुश है वो गाँव आज कि गुलदार मर गया।७।
दे दी है बेबसी जो सियासत ने यार इक
मुंसिफ का सिर्फ नाम है अधिकार मर गया।८।
बरसों से ठग रहा था मैं खुद को मुखौटे से
अच्छा हुआ कि आज वो किरदार मर गया।९।
देते हैं पहले जोर वो कहकर नियम नियम
कहते गजल का बाद में क्यों सार मर गया।१०।
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।
वाजिब हुआ करे था जो तकरार मर गया
मतले के ऊला मिसरे में शिल्प कमज़ोर होने से बात समझ नहीं आ रही,देखिये ।
'
आमद की लालसा में वो अख़बार मर गया'
इस मिसरे में 'आमद' का क्या अर्थ लिया है?
'जिसमें बसे हैं भेड़िये आदम के रूप में
खुश है वो गाँव आज कि गुलदार मर गया'
इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखिये ।
'देते हैं पहले जोर वो कहकर नियम नियम
कहते गजल का बाद में क्यों सार मर गया'
ये तंज़ किस पर है भाई?
ग़ज़ल पर पुनः आता हूँ ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार , शानदार गजल के लिए मुबारकबाद आपको
गजल पर चर्चा भी आलातरीन हुई, वाह
आ. भाई छोटे लाल जी, उपस्थिति और प्रशंसा के लिए धन्यवाद ।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब. बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ. खासकर ये अशआर:
सौदा वतन का रोज ही शासक यहाँ करें
सैनिक ही नाम देश के बेकार मर गया।४।
बरसों से ठग रहा था मैं खुद को मुखौटे से
अच्छा हुआ कि आज वो किरदार मर गया।९।
देते हैं पहले जोर वो कहकर नियम नियम
कहते गजल का बाद में क्यों सार मर गया।१०।
बहुत खूब. सादर
आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत खूब ग़ज़ल हुई है. सारे शेर बहुत अच्छे है.
जो हक बयाँ का दोस्तो औजार था कभी > जो हक बयानी का था इक औज़ार मर गया (इसे हुस्ने-मतला बना सकते हैं)
कहते गजल का बाद में क्यों सार मर गया > कहते हैं फिर वो बाद में, क्यों सार मर गया (इस तरह बात सिर्फ़ ग़ज़ल तक सीमित नहीं रहेगी)
सादर
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब सुंदर गजल के लिए बहुत बहुत बधाई
आ. भाई बलराम जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति, स्नेह और सुझाव के लिए आभार । चौथे शेर का सानी मिसरा इस प्रकार देखें।
सैनिक ही नाम देश के बेकार मर गया।४।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"जी।बेहतरीन गज़ल।
बरसों से ठग रहा था मैं खुद को मुखौटे से
अच्छा हुआ कि आज वो किरदार मर गया।९।
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