काल चक्र - लघुकथा -
"राघव, तुम यहाँ रेलवे प्लेटफार्म पर, इस हालत में?"
मुझे एक बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बेंच पर बैठा शख्स मेरा मित्र राघव ही है। दाढ़ी , बाल बढ़े हुए। पैर में हवाई चप्पल। पाजामे के साथ ढीली सी टी शर्ट। मेरा हम उम्र था लेकिन अस्सी साल का बूढ़ा लग रहा था|
मैं जिस राघव का दोस्त था, वह तो सदैव आसमान में उड़ता था। शेर की तरह दहाड़ता था। कालेज के दिनों में वह अकेला बंदा था जो सूट बूट और टाई पहनकर कार में कॉलेज आता था। क्या शानदार व्यक्तित्व था। हर कोई उसे दोस्त बनाने को लालायित रहता था। वह भी किसी को निराश नहीं करता था। खानदानी रईस था लेकिन घमंड रत्ती भर भी नहीं। लड़कियां तो उसकी दीवानी थीँ। वह भी एक को दिल दे बैठा। परिवार नाराज हो गया लेकिन उसने अपना धर्म और वचन निभाया। कोर्ट मैरिज कर ली। परिवार ने रिश्ता तोड़ लिया| तक़दीर का धनी था। एक कंपनी में एच आर डी मैनेजर लग गया।एक बेटा भी हो गया।उसकी शान शौकत में कोई कमी नहीं आई। दयालु प्रवृति थी तो लोगों की सहायता भी करता था।
मगर आज उसे इस हाल में देखकर दिल टूट गया।
"राघव, कहीं जा रहे हो?"
"हाँ मित्र।"
"कहाँ?"
"जहाँ भी दाना पानी लिखा हो।"
"मैं कुछ समझा नहीं?"
"समझ तो मैं भी नहीं पाया।"
"कैसी बात कर रहे हो? क्या बेटे से कुछ अनबन हो गयी?"
"अरे नहीं मित्र, वह तो हीरा है। ईश्वर सब को ऐसी संतान दे।"
"तो क्या उसकी पत्नी से खटपट हुई है?"
"हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो।"
"क्या हुआ कुछ विस्तार से बताओगे।"
"मित्र सौ बात की एक बात, उसे मेरा वहाँ रहना पसंद नहीं। जब तक पत्नी जीवित थी, सब ठीक था। उनके स्वर्गवास के बाद सब बदल गया। वह बात बात पर ऐसे डाँटती है, जैसे मेरी माँ हो। बाथ रूम गंदा कर दिया। चप्पल वहाँ रखो| घर में नौकर हैं लेकिन छोटे छोटे कामों के लिये मुझे बाज़ार भेजती है। एक मिनट चैन से बैठने नहीं देती। मेरे नाती को भी मुझसे बात नहीं करने देती। उसे मेरे विरुद्ध भड़काती है। मुझे चाय का शौक है लेकिन वह केवल दो बार चाय देती है।एक बार मैं खुद चाय बनाने लगा तो मेरी बनाई चाय फ़ेंक दी और कहा,"खबरदार जो दोबारा किचन में घुसे।" बेटे से कहा तो घर में तूफ़ान मच गया।अपने मायके जाने लगी। आत्म हत्या की धमकी दे डाली। बड़ी मुश्किल से बात बनी। उसके बाद तो वह और भी उग्र हो गयी। अब मेरा वहाँ रहना दूभर हो गया।"
"मेरे साथ चलोगे।"
"नहीं मित्र, अब तो केवल अकेले ही सफ़र पर जाना है।"
"तुम्हारा समान कहाँ है?"
एक छोटा सा कपड़े का थैला दिखाते हुए कहा,
"जीवन के अंतिम सफ़र में सामान जितना कम हो उतना ही अच्छा है।"
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बड़ी ही खूबसूरत भावनात्मक लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय...
किसी की संवेदनशीलता और सहनशीलता , किंतु अधिकांश की असंवेदनशीलता! बहुत ही मार्मिक विचारोत्तेजक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।
"जीवन के अंतिम सफ़र में सामान जितना कम हो उतना ही अच्छा है।" परिवार का इस तरह का असंवेदनशील व्यवहार इंसान को निराशा ही नहीं करता जीवन के मोह से भी विमुख करता है ! हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी |
हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी।
हार्दिक आभार आदरणीय कल्पना भट्ट रौनक जी।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी आदाब,
उम्र की विडंबना कह लीजिए या काल की क्रूरता हर हाल में शिकार व्यक्ति ही होता है । सारी उम्र जिस घर-परिवार को बनाने खप जाती है कोई दूसरा आकर उसे तहस-नहस कर देता है । पता नहीं क्यों अन्य परिवार से आई स्त्री घर के बुजुर्गों को फूटी आँखों नहीं सुहाती । ये दुष्ट प्रवृत्ति उनमें जाने कहाँ से आती है ।
कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं । हार्दिक आभार इस शानदार पेशकश पर ।
श
जीवन के अंतिम सफ़र में सामान ईतना कम हो उतना ही अच्छा है| कितना दर्द होता है जब अपने बच्चे ही ऐसा बर्ताव करें| बहुत अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी| क्या उम्र के इस मोड़ पर निराशा ही हाथ लगती है! हार्दिक बधाई |
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
हार्दिक आभार आदरणीय राज़ नवादवी जी।
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