For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 1222 1222 1222

हुआ अब तक नहीं है हुस्न का दीदार जाने क्यों ।
बना रक्खी है उसने बीच मे दीवार जाने क्यों ।।

मुहब्बत थी या फिर मजबूरियों में कुछ जरूरत थी ।
बुलाता ही रहा कोई मुझे सौ बार जाने क्यों ।।

यहाँ तो इश्क बिकता है यहां दौलत से है मतलब ।
समझ पाए नहीं हम भी नया बाज़ार जाने क्यों ।।

तिजारत रोज होती है किसी के जिस्म की देखो ।
कोई करने लगा है आजकल व्यापार जाने क्यों ।।

कोई दहशत है या फिर वो कलम को बेचकर बैठे ।
बहुत ख़ामोश होते जा रहे अख़बार जाने क्यों ।।

हर इक इंसान में नफरत सियासत बो गयी शायद ।
जलेगा मुल्क मुद्दत तक लगा आसार जाने क्यों ।।

वो पढ़ लिख कर निवाले के लिए मोहताज़ है साहब ।
यहां सुनती नहीं कुछ बात को सरकार जाने क्यों ।।

बड़ी उम्मीद थी वो मुल्क़ की सूरत बदल देंगे ।
लगे हैं लोभ के आगे वही लाचार जाने क्यों ।।

तरक्की हो चुकी है मान लेता हूँ मगर साहब ।
यहां रोटी पे होती है बहुत तक़रार जाने क्यों ।।

बगावत कर चुके है जब रहेंगे हम सदा बागी ।
फरेबी दे रहे अब झूठ का उपहार जाने क्यों ।।

वो चिड़िया उड़ गई जब आपको अपना समझते थे ।
जमाते आप मुझपर हैं कोई अधिकार जाने क्यों ।।

मौलिक 

अप्रकाशित

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 27, 2018 at 3:59pm

मैंने आपको लिखा है कि रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो रहा है,उस पर विचार करें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 26, 2018 at 10:21pm

आ0 कबीर सर सादर नमन 

मैंने जिस भाव के अंतर्गत शेर कहने का प्रयास किया है उसका भाव स्पष्ट कर रहा हूँ ।

शेर संख्या 2 

वर्तमान समय मे शायर मुहब्बत के गिरते हुए स्तर को लेकर अपनी भ्र्म पूर्ण स्थित को प्रकट कर रहा कि कोई(प्रेयसी )मुहब्बत में बुला रहा था अपनी जरूरत की वजह से बुला रहा था । पर न जाने क्यों वह बार बार बुला रहा था ।

शेर संख्या 3

यहां शायर 

प्रेम के बदलते रूप पर प्रकाश डाल रहा है । लोग अब पैसों के लिए मुहब्बत करते है न जाने क्यों यह बात अब तक समझ नहीं सका ।

शेर संख्या 4

भावार्थ यह है कि कोई अब न जाने क्यों जिस्म तक का सौदा कर रहा है । यहां पहली पंक्ति की तिजारत रब्त व्यापार से है । 

शेर 6

शायर यहां मुल्क को जलता हुआ देख रहा है । आदमी आदमी से नफरत करता देख कर उसके मूल में सियासत को कारण मानने की सम्भवना तलाश कर रहा है । अभी मुद्दत यह आग बुझने की उम्मीद दिखाई नही दे रही।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2018 at 7:11pm

आ. भाई नवीन जी, गजल का अच्छा प्रयास हुआ है । हार्दिक बधाई । आ. भाई समर जी की राय का संज्ञान लें । शेष शुभ शुभ...

Comment by Samar kabeer on November 26, 2018 at 11:51am

ग़ज़ल के 2,3,4,6 नम्बर के अशआर में भाव स्पष्ट नहीं,और रदीफ़ से भी इंसाफ नहीं हो रहा है,

Comment by Samar kabeer on November 25, 2018 at 5:04pm

इस ग़ज़ल पर पुनः आता हूँ ।

Comment by क़मर जौनपुरी on November 24, 2018 at 9:03pm

बहुत खूब ।

Comment by narendrasinh chauhan on November 24, 2018 at 3:09pm

बहोत खूब सर ,

Comment by राज़ नवादवी on November 23, 2018 at 5:54pm

वाह वाह जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी, बहुत खूब. 

हुआ अब तक नहीं है हुस्न का दीदार जाने क्यों ।
बना रक्खी है उसने बीच मे दीवार जाने क्यों ।।

सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2018 at 5:16pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2018 at 5:15pm

आ0 श्याम नारायण वर्मा जी सप्रेम आभार और नमन ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service