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टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं

ग़ज़ल

इक ठिकाना तलाशता हूँ मैं ।
टूटा पत्ता दरख़्त का हूँ मैं ।।

कुछ तो मुझको पढा करो यारो ।
वक्त का एक फ़लसफ़ा हूँ मैं ।।

हैसियत पूछते हैं क्यूं साहब ।
बेख़ुदी में बहुत लुटा हूँ मैं ।।

इश्क़ की बात आप मत करिए ।
रफ़्ता रफ़्ता सँभल चुका हूँ मैं ।।

चाँद इक दिन उतर के आएगा ।
एक मुद्दत से जागता हूँ मैं ।।

खेलिए मुझसे पर सँभल के जरा।
इक खिलौना सा काँच का हूँ मैं ।।

रूठ जाती है बेसबब किस्मत ।
यह ज़माने से देखता हूँ मैं ।।

वो लगाते हैं आग शिद्दत से ।
देखिए अब तलक जला हूँ मैं ।।

ऐ मुसाफ़िर जरा मेरी भी सुन ।
काम आए वो तज्रिबा हूँ मैं ।।

रह गया उम्र भर जो अनसुलझा।
जिंदगी तेरा मसअला हूँ मैं ।।

इतना आसां नहीं मुकर जाना ।
आपका ही तो सिलसिला हूँ मैं ।।

मौलिक अप्रकाशित

--नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 1, 2018 at 11:28am

आ0 राज नावादवी साहब ग़ज़ल तक आने के लिए तहेदिल से शुक्रियः।

Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:09am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी, सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 29, 2018 at 12:12pm

आ0 शेख शहज़ाद उष्मानी साहब तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 29, 2018 at 6:11am

दिलचस्प शैली व काफ़ियों के साथ सब कुछ कह दिया आपने। बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहिब।

Comment by Rahul Dangi Panchal on November 27, 2018 at 9:43pm

बहुत खूब

Comment by Rahul Dangi Panchal on November 27, 2018 at 9:43pm

बहुत खूब 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2018 at 5:41pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 27, 2018 at 5:41pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ तहेदिल से शुक्रियः।

Comment by Samar kabeer on November 27, 2018 at 3:47pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 27, 2018 at 11:15am

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।

रह गया उम्र भर जो अनसुलझा।
जिंदगी तेरा मसअला हूँ मैं ।।

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