दो क्षणिकाएं :
पिघल गयी
दे कर आघात
बेदर्दी याद
......................
ढाया कह्र
आफ़ताब ने
ओस की बूँद पर
बिखर गई रेज़ा-रेज़ा
तन्हा-तन्हा
रोया गुलाब
.....................
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय PHOOL SINGH जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय Samar kabeerजी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय राज़ नवादवीजी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।
क्या बात है सर जी बहुत सूंदर बधाई
आ. भाई सुशील जी, सुंदर क्षणिकाएँ हुयी हैं । हार्दिक बधाई ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,उम्दा क्षणिकाएँ हुई हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
सुन्दर क्षणिकाओं की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी. सादर.
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