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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८५

२२१२ १२१२ २२१२ १२

हस्ती का मरहला सभी इक इक गुज़र गया
मैं भी तमाशा बीन था, अपने ही घर गया //१

इश्वागरी के खेल से मैं यूँ अफ़र गया
सारा जुनूने आशिक़ी सर से उतर गया //२

खोया न मैं हवास को आई जो नफ़्से मौत
ज़िंदा हुआ मशामे जाँ, मैं जबकि मर गया //३

हैराँ हूँ अपने शौक़ की तब्दीलियों पे मैं
नश्शा था तेरे हुस्न का, कैसे उतर गया //४

सस्ते में दामे बूद से मुझको मिली नज़ात
छूटा गिरफ़्ते ख़ुद से मैं तो अल हज़र गया //५

ख़िल्वत में मुझसे यूँ हुआ मुतलक़ वो हमगुजीं
आया था वक़्त शब लिए, पर बे सहर गया //६

रहता है जामे सुब्ह का ज्यों देर तक ख़ुमार
मुद्दत में पहले प्यार का दिल से असर गया //७

जो भी ज़रब मिली मुझे अपनों से ही मिली
ग़ैरों से मिलने बेवजह सीना सिपर गया //८

अफ़साना अपने प्यार का बादल सा था ख़फ़ीफ़
बारिश की ठंढी बूँद में गिरकर बिखर गया //९

मेरी ख़ुदी के हिफ्ज़ का जिम्मा था दिल के सर
सय्याद बनके मेरे ही डैने क़तर गया //१०

ज़ाहिद हुआ यूँ 'राज़' मैं करके किसी से इश्क़
लेके ख़ुदा के घर भी मैं जाज़िब नज़र गया //११

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

इश्वागरी - हाव-भाव दिखाने की मुद्रा; नफ़्से मौत- मृत्यु का क्षण; मशामे जाँ- आत्मा; दामे बूद- अस्तित्व की क़ैद; नज़ात- छुटकारा; अल हज़र- ख़ुदा की पनाह; ख़िल्वत- एकांत; मुतलक़- नितांत, बिलकुल; ज़रब- चोट, ज़ख्म; सीना सिपर- छाती का सुरक्षा कवच; ख़फ़ीफ़- हल्का; हिफ्ज़- सुरक्षा; जाहिद- ऋषि, ब्रह्मचारी; जाज़िब नज़र- आकर्षक दृष्टि;


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Comment by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 2:02pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. 

Comment by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 2:01pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 12:00pm

वाह राज साहब बेहतरीन ग़ज़लकारी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2018 at 12:08pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 9:07am

आदरणीय छोटेलाल सिंह साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफजाई का तहे दिल से शुक्रिया

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on December 19, 2018 at 9:01am

आदरणीय राज नवादवी साहब बहुत ही जीवंत रचना है हार्दिक बधाई कुबूल कीजियेगा

Comment by राज़ नवादवी on December 18, 2018 at 3:32pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब अर्ज़ है. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 18, 2018 at 2:45pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

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