For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (जीवन सरोज खिल के भी सुरभित नहीं हुआ।)

221, 2121, 1221, 212

आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।
जीवन सरोज खिल के हाँ सुरभित नहीं हुआ।

छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी,
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।

कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।

गिरकर संभल रहे हैं, गिरे जितनी बार हम, 
साहस हमारा आज भी खण्डित नहीं हुआ।

क्या मुझको मिल गया है, मुझे क्या नहीं मिला,

मन में तो है विषाद, मैं चिंतित नहीं हुआ।

विचलित हुई सदा ही ये नारी, ये सच नहीं,
गौतम कभी अहिल्या सा शापित नहीं हुआ।

मौलिक/अप्रकाशित।

~बलराम धाकड़ ।

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on December 27, 2018 at 6:23pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विनय कुमार जी।

सादर।

Comment by विनय कुमार on December 27, 2018 at 6:11pm

वाह, बहुत बढ़िया और प्रभावशाली ग़ज़ल कही है आपने आ बलराम जाखड़ जी, बधाईया क़ुबूल कीजिये

Comment by Balram Dhakar on December 27, 2018 at 1:16pm

आदरणीय सौरभ सर, सादर अभिवादन और बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने ग़ज़ल में न केवल शिरक़त की बल्कि अपने अमूल्य सुझावों से भी अवगत करवाया। यक़ीनन आपके सुधार के बाद ग़ज़ल में जादूई बदलाव शिल्प ही नहीं, कथ्य के स्तर पर आ गया है। आपका ढेर सारा आभार और धन्यवाद।

सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2018 at 12:31am

आदरणीय बलराम धाकड़ जी, आपकी ग़ज़ल का रंग और तदनुरूप प्रस्तुतीकरण रोचक भी है और स्वागतयोग्य भी. हार्दिक बधाइयाँ. 

संप्रेषणीयता के निकष पर इस ग़ज़ल के कुछ मिसरे अवश्य और सधे होने थे ताकि भाषा, जो कि ग़ज़ल विधा का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण बिन्दु है, कुछ और व्याकरणसम्मत हो कर प्रयुक्त हुई दिखती.

अस्फुट-सा ही सही, एक प्रयास कर रहा हूँ. 

 

जीवन सरोज खिल के भी सुरभित नहीं हुआ।
आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।

आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ 

जीवन-सरोज खिल के हाँ  सुरभित नहीं हुआ।

छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता से,भेद से,
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।

छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी 
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।

कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।

कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
ये आसमां भी रक्त से रंजित नहीं हुआ।

विश्वास है, अन्यथा न लेते हुए आप इससे भी बेहतर प्रयास करेंगे. 

हार्दिक बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ 

Comment by Balram Dhakar on December 24, 2018 at 11:31pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 22, 2018 at 12:34pm

आ. भाई बलराम जी, बेहतरीन गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Balram Dhakar on December 22, 2018 at 12:28pm

आदरणीय ब्रजेश जी, सुख़न नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on December 22, 2018 at 12:27pm

जनाब राज़ साहब, आपको ग़ज़ल अच्छी लगी, मेरा लिखना सार्थक हुआ।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on December 22, 2018 at 12:26pm

जनाब समर कबीर साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 12:12pm

क्या बात है क्या बात है आदरणीय..कायल हूँ मैं आपका...बेहतरीन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service