For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल:पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के......(३)

(221 2122 221 2122 )


पुरखार रहगुज़र है चलना सँभल सँभल के
आसाँ नहीं निभाना मत लेना इश्क़ हल्के
***
सच कह रहे हैं हमने देखा बहुत ज़माना
रह जाएँ आग में सब आशिक़ कहीं न जल के
***
दम तोड़ती यहाँ पर आई नज़र है हसरत
देखे हैं लुटते अरमाँ हर पल मचल मचल के
***
जो चाहते हैं अपना चैन-ओ-सुकून खोना
मैदाँ में वो ही आये हाथों में थूक मल के
***
अक़्सर यहाँ पे पड़ता मिर्गी के जैसा दौरा
कटती है रात सारी करवट बदल बदल के
***
अख़लाक़ सीखने का जब होश तक नहीं है
समझेंगे क्या मोहब्बत जो छोकरे हैं कल के
***
है हिज़्र की मुसीबत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की आफ़त
आसार भी नहीं है पक्के किसी भी फल के
***
गर जिस्म तक ही जाना बर्बाद मत करो वक़्त
नापाक वो मोहब्बत जिसमें न रूह झलके
***
पाने की सोचना मत खोने की रहगुज़र है
समझो 'तुरंत' मिलना कुछ भी न इस पे चल के
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 27, 2018 at 10:22pm

भाई - बृजेश कुमार 'ब्रज' आपकी स्नेहिल सराहना के लिए दिल से आभार | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 27, 2018 at 7:29pm

वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल कही है..

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 26, 2018 at 2:42pm
Comment by Samar kabeer on December 26, 2018 at 2:19pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

आपने अपनी पिछली ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी का उत्तर नहीं दिया?

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on December 25, 2018 at 2:22pm

भाई ,Surkhab Bashar साहेब ,आदाब ,पहले तो आपकी दाद और तहसीन के लिए दिल से शुक्रगुज़ार हूँ | दूसरी बात यह कहना चाहता हूँ आपका नाम बहुत खूबसूरत है |  यह तखल्लुस है या नाम मालूम नहीं | तीसरे जिस शेर का आपने जिक्र किया है उसमें तक़ाबुले रदीफ़ नहीं है ,अभी तक जो मेरी समझ में आया है ,उर्दू में उच्चारण के हिसाब से मात्रा तय होती है तो "है " का उच्चारण "ह " जैसा होता है इसलिए तक़ाबुले रदीफ़ नहीं होगा क्योंकि इसमें (के ) जैसा (ए ) स्वर नहीं निकलता इसलिए दोनों तरह का तक़ाबुले रदीफ़ नहीं है | 

Comment by Surkhab Bashar on December 25, 2018 at 11:51am
  • आ. गिरधारी सिंह तुरंत जी ग़ज़ल  बहुत ख़ूब है 
  •  दाद के साथ बधाई स्वीकार करें
  •  अख़लाक़ सीखने का जब....... 
  • इस शेर में तक़ाबुल रदीफ आगई है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
53 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
2 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
10 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
22 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service