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कुण्डलिया

जन को ढलना चाहिए, मौसम के अनुकूल
संकट होगा स्वास्थ्य पर, अगर करेंगे भूल
अगर करेंगे भूल, बात यह सही विचारो
खान-पान औ वस्त्र, सही ऋतुशः ही धारो
सतविंदर व्यवहार, सही हो रख पक्का मन
तन इसके अनुरूप, नहीं मन मौसम हो जन!

2.
जय-जय जय-जय हे अरुण!, तुम आभा भंडार
मिलती तुमसे जब किरण, तब चालित संसार

तब चालित संसार, प्रेरणा बात तुम्हारी
ऊर्जा तुमसे देव, मही अम्बर ने धारी
सतविंदर हर श्वास, सतत चलता है निर्भय
युग-युग रहो दिनेश!, तुम्हारी होती जय-जय।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 11, 2019 at 7:59am

आदरणीय सौरभ सर सादर वन्दे! उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के लिए कोटिशः आभारं। कुछ परिवर्तन आपके मार्गदर्शनानुरूप करने की कोशिश की है। सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 11, 2019 at 7:58am

आदरणीय समर कबीर सर, अरबी/उर्दू की शून्य जानकारी है। फिर भी जो शब्द पकड़ पाता हूँ पकड़ लेता हूँ। इस बात को लेकर मैं विशुद्ध देवनागरी के मामले में आतंकित तो नहीं पर असहज अवश्य हो जाता हूँ। क्योंकि यदि उर्दू में काफ़िया मिलाने की बात आती है तो ऐसा अधिकांशतः मैं कर ही नहीं पाता। मैं उन्ही शब्दों का प्रयोग कर पाता हूँ जिन्हें मैंने आम तौर पर पढ़ा है। ऐसे में जरूरी नहीं कि देवनागरी में जब लिखा या पढ़ा जा रहा है तो वहाँ अरबी के काफ़िये ही मिलाए जाएं। क्योंकि एक ज/ज़ के मामले में ही कई सोती काफ़िये उभर आते हैं। यह कंफ्यूज़न हिंदी में नहीं है। इसीलिए मैं जो शेर जैसा भी कुछ कहने की कोशिश करता हूँ तो, उसे देवनागरी के हिसाब से ही। आपसे मेरी इतनी गुजारिश है कि आप अपनी बात कह लिया करें। क्योंकि कुछ तो अरबी शब्दों का ज्ञान आपके कृतर्त्व से हो जाता है। सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 11, 2019 at 7:50am

आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन, सादर हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिए। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 11, 2019 at 7:48am

आदरणीय फूल सिंह जी सादर नमन सह आभारं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2018 at 11:48pm

आदरणीय सतविन्द्र जी, आपकी शिल्पसधी कुण्डलिया के लिए हार्दिक बधाई. 

मौसम के अनुकूल वेशभूषा और व्यवहार पर आपने नीतिगत बात की है. परन्तु, दूसरी कुण्डलिया में पुंज का सही प्रयोग नहीं हुआ है. शुद्ध अक्षरी पुंज है न कि पुँज. इस कारण उक्त चरण की बुनावट असहज हो गयी है.

इसी तरह, 

रहे चल ऐसे निर्भय   एक असहज वाक्यांश है. ऐसे विन्यास रुचिकर नहीं लगते.

इसे सतत हैं ऐसे निर्भय भी किया जा सकता है. या, आप अधिक उचित वाक्यांश केलिए सोच सकते हैं   

बाकी पूर्ववत सही है. 

शुभातिशुभ

Comment by Samar kabeer on December 24, 2018 at 5:10pm

एक बात पूछना चाहता हूँ कि कल के आयोजन में मैंने तुकांतता के सम्बंध में जो जानकारी दी,क्या उसमें कोई दबाव महसूस किया आपने,या मैंने आपको आतंकित किया?

Comment by Samar kabeer on December 24, 2018 at 5:07pm

जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब,अच्छे कुण्डलिया छन्द हुए हैं,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by PHOOL SINGH on December 24, 2018 at 2:40pm

बहुत सूंदर रचना बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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