नए वर्ष की भोर ....
क्षण
दिन, महीने
सब को बांधे
चल दिया
पुराना वर्ष
तम के गहन सागर को पार कर
दूर क्षितिज पर
नव वर्ष के गर्भ से
अंकुरित होते
सूरज की अगवानी करने
अच्छा बीता
बुरा बीता
जैसा भी बीता बीत गया
एक स्वप्न
स्वप्न रहा
एक यथार्थ जीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
जीती ख़ुशी
या दर्द जीता
जो भी जीता जीत गया
दर्द पुराना रीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
तपते आँसू
घायल खुशियाँ
क्या -क्या बाँधे गठरी में
चुप -चाप अँधेरे में देखो
कल बन के
युग बीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
दंश समय के
हृदय भाल पर
बन दर्पण के
बिम्ब बने
कंचन काया पर जाने कब
लिख कर कोई गीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
कल तो तम में
लीन हुआ
भानु तम से
जीत गया
विगत पलों कुछ सीखें
कुछ
लक्ष्य नए साकार करें
आओ
नए वर्ष के
प्रथम पृष्ठ पर
जीवन का
लिखें गीत नया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
//अच्छा बीता
बुरा बीता
जैसा भी बीता बीत गया
एक स्वप्न
स्वप्न रहा
एक यथार्थ जीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया// ...बहुत ख़ूब!
नये वर्ष पर उम्दा कविता लिखी है आपने आदरणीय सुशील सरना जी. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
//विगत पलों से कुछ सीखें// देख लीजिएगा.
सादर.
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। नए वर्ष की भोर एक लुभावना शीर्षक से आरम्भ कर बहुत बेहतरीन रचना की आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।
जनाब भाई सुशील सरना साहिब , नए और पुराने साल की यादों का संगम कराती सुंदर कविता हुई है , मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय केवल प्रसाद 'सत्यम जी ... सृजन आपकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सुशील स्ररना भाई जी,
अतिशय सुंदर अभिव्यक्ति की हार्दिक बधाई.
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