++ग़ज़ल ++(1222 1222 1222 1222 )
हज़ारों बार क़ुदरत ने इशारा तो किया होगा
कभी नाहक कोई तूफ़ान शायद ही उठा होगा
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जुनूनी है जिसे मंज़िल नज़र भी साफ़ आती है
वही अक़्सर अचानक नींद से उठकर खड़ा होगा
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समझ रक्खे कोई तो इश्क़ की गलियाँ नहीं देखे
क़दम पहला उठाया वो यक़ीनन सरफिरा होगा
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नफ़ा-नुक़्सान उल्फ़त में लगाए कौन छोडो भी
ज़रा सा पा लिया हमने कुछ उसने खो दिया होगा
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न सोचा था न समझे हम न ही इंकार कर पाए
जब उसने क़त्ल से पहले भरोसे में लिया होगा
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मदद को हाथ उठते कम तमाशे में सभी शामिल
कभी इंसान ख़ुदग़र्ज़ी की फ़ितरत से जुदा होगा ?
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हक़ीक़त हो भले कड़वी मगर आँखों से देखी है
उसे ही लोग मारेंगे जो दिखता अधमरा होगा
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वफ़ा कुछ इस क़दर हम घोल देंगे आब-ए-दरिया में
हमारे शह्र में आकर न कोई बेवफ़ा होगा
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'तुरंत ' आख़िर समझ में क्यों नहीं आती ज़रा सी बात
सुख़नवर वो बनेगा जिसने कुछ पढ़कर गुना होगा
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
05 /01 /2019
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
भाई Gajendra shrotriya आपकी स्नेहिल सराहना के लिए हृदय तल से आभार | स्नेह बनायें रखें |
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ,रचना पर आपके स्नेहिल उद्गारों के लिए दिल से आभार | समीक्षा का अधिकार हर पाठक को भी होता है ,इस ब्लॉग में sign up करने का उद्देश्य ही कमियों को ढूँढना है | समय हो तो आप की नज़र में कहाँ शब्द विन्यास लय से भटक रहे हैं कृपया इंगित करें |
अच्छे अशआर हुए हैं आदरणीय। लगभग सभी शेर पुरअसर और अच्छी कहन में हैं। दिली दाद और बधाई स्वीकार करें।
आद0 गिरधारी सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। कहीं कहीं शब्द विन्यास लय से भटकते नजर् आये,, गुणीजनों की समीक्षा का मैं भी प्रतीक्षारत हूँ। बधाई स्वीकार कीजिये इस रचना पर
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