प्रस्तुत है कुछ पुच्छल दोहे
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प्रेम और उत्साह जब ,पैदा करें तरंग |
छोड़ कुसुम के तीर तब , विहँसे तनिक अनंग ||
मिलन का क्षण ही ऐसा |
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देश प्रेम की हर समय ,उठती रहे हिलोर |
उन्नति की फिर देश में ,निश्चित होगी भोर ||
यही हो लक्ष्य हमेशा |
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ह्रदय सभी के आ सकें ,थोड़े से भी पास |
फिर निश्चित इस देश में ,छा जाये उल्लास ||
यत्न सब कर के देखें |
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एक रहें उत्साह रख , छोड़ दिलों के भेद |
कर सकते हम मिल सभी ,आसमान में छेद ||
एकता में ही बल है |
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मन उमंग तन हो चपल ,यौवन के संकेत |
सावधान अब काम का , जगने वाला प्रेत ||
शीघ्र फिर शांत न होगा |
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प्रेम प्यार उल्फत सभी ,एक शब्द पर्याय |
जिसके जीवन में नहीं ,बदकिस्मत कहलाय ||
हाथ की बदलें रेखा |
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इच्छा प्रभु की हो अगर , उपजे प्रीत प्रगाढ़ |
वह चाहे तो प्रेम की , आ सकती है बाढ़ ||
एक बादल है काफी |
***
मित्र करे तो मित्रता ,मीत करे तो प्यार |
बहन करे तो स्नेह है ,माँ जब करे दुलार ||
प्रीत के रंग कई हैं |
***
राधा-कान्हा प्रेम की , सुन्दर एक मिसाल |
पढ़ सुन कर इनकी कथा ,होता जगत निहाल ||
बहुत रस आता भैया |
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कह 'तुरंत' जिसने किया , प्रेम सुधा का पान |
रहता उसको है कहाँ ,जीव जगत का भान ||
सुरा यह पीकर देखो |
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
Comment
आदरणीय Samar kabee जी ,सर्वप्रथम तो दोहों की सराहना के लिए हार्दिक आभार एवं सादर नमन | आप का ध्यान सही जगह गया है | और आपने पढ़ा भी ठीक ही है मैंने चपल-ता ही लिखा है | हिंदी में मात्रा गणना १११२ इस प्रकार से की जाती है | मैंने यही सोच कर इसे चप ल-ता ही पढ़ा | किंतु मुझे आपकी बात सही लगी | वस्तुतः हम अपनी मर्ज़ी से पढ़ सकते हैं लेकिन लय के हिसाब से उर्दू का फार्मूला ही सही बैठता है |हालाँकि हिंदी के कई विद्वान मात्रा गणना करते समय लघु लघु लघु को अलग मानकर करते हैं | जैसे समर =१२ और २१ दोनों ले लेते हैं जबकि लय के हिसाब से स-मर अधिक ठीक लगता है | आपके निर्देश के अनुसार १२२ ही इसका सही वजन है | इसलिए इस पंक्ति को इस प्रकार परिवर्तित कर रहा हूँ -मन उमंग तन हो चपल ,यौवन के संकेत | पुनः आभार | कृपया इसी प्रकार स्नेह बनाये रखें |
क्षमा !
मैं इसे 'च पल ता' पढ़ गया,ये शायद "चप ल ता" है ।
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'मन उमंग तन चपलता'
इस पंक्ति के विषम चरण में 'चपलता'122 है,जबकि यहाँ 212 होना चाहिये, देखियेगा ।
नमस्कार भाई सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ,आपके उत्साहवर्धक शब्दों ने अभिभूत कर दिया है | सादर आभार |
आद0गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। दोहों का सुंदर प्रयास किया है आपने,, बधाई स्वीकार कीजिये
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