( २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
.
लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है
बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय-हाय ,अफ़सोस )
***
ख्वाब तसव्वुर ख़त मौसम ये चाँद बहाने कितने हैं
तेरी यादों के लश्कर से यार जुदाई मुश्किल है
***
माना ग़म की मार पड़ी है चारों खाने चित्त हुआ
कैसे भी हों मेरे अब हालात गदाई* मुश्किल है (*भिक्षावृति )
***
अपनों ने धोका कर डाला लूट भरोसे की दौलत
मेरे मुख से उनकी फिर भी आज बुराई मुश्किल है
***
हिम्मत क़ायम रक्खी तब भी जब मंज़िल के रस्ते पर
बीच सफर में रहबर बोला-" राह-नुमाई मुश्किल है "
***
कितनी कोशिश कर लें चाहे लोग हुकूमत करने की
आ जाएगी यार किसी के हाथ ख़ुदाई मुश्किल है
***
लीपापोती ख़ूब भले कर लो तुम नक़ली रंगो से
जो बख़्शी है रब ने वैसी तो रानाई* मुश्किल है (*सौंदर्य )
***
कैसा खेल नसीबों का वो लोट लगाए नोटों पर
पर अफ़सोस ख़ुदा मुफ़लिस को पाई पाई मुश्किल है
***
क्या बिखराए रंग ज़मीँ पर क़ुदरत ने देखो सारे
ख़त्म 'तुरंत' अगर करते उनकी भरपाई मुश्किल है
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
०४ /०१/२०१९
Comment
हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका।
कितनी कोशिश कर लें चाहे लोग हुकूमत करने की
आ जाएगी यार किसी के हाथ ख़ुदाई मुश्किल है ....सामयिक शेर!
बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आपका स्वागत है ब्रदर. सादर
तह-ए-दिल से शुक्रिया क़बूल करें खादिम का राज़ नवादवीसाहेब . ज़र्रा -नवाज़ी है आपकी |
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत साहब, आदाब. बहुत ख़ूब फरमाया है आपने, शेर दर शेर काबिले दाद. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति मुबारक हो. सादर
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब | आपके हौसला आफजाई के लफ़्ज़ों के लिए शुक्रगुज़ार हूँ | जी ,हैफ़ का अर्थ लुग़त में हा,आह ,हाय-हाय ,अफ़सोस ही लिखा है | मुझसे एक हाय लिखना छूट गया | मेरा मक़सद भी अफ़्सोस का अर्थ बतलाना ही था | क्योंकि हाय का अर्थ सही नहीं लग रहा था | आपकी दूसरी इस्लाह भी जियादा मुफ़ीद है | बहुत बहुत दिल से आभार |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
' बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय )'
इस मिसरे में 'हैफ़' शब्द का अर्थ आपने 'हाय' लिखा है,जबकि 'हैफ़', का सहीह अर्थ है "अफ़सोस" देखियेगा ।
' लीपापोती ख़ूब भले कर लो तुम नक़ली रंगो की'
इस मिसरे में अंतिम शब्द 'की' की जगह "से"ज़ियादा मुनासिब होगा ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online