For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर भी .......(९ )

(1212 1122 1212 22 /112 )

.

बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )
फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी 
*
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी 
*
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी 
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी 
*
किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या हो जब 
सुकूं तलाशते देखे हैं मैंने आमिर* भी (*शासक )
*
बहुत है मुश्किलें लेकिन ये दिल समझता है 
क़फ़स में क़ैद भी आज़ाद एक ताइर* भी (*पंछी )
*
जनाब कीजिये इज़हार-ए-प्यार कुछ ऐसे 
ख़मोश लब हों मगर हो ये प्यार ज़ाहिर भी 
*
कमाई इतनी है शुह्रत ज़मीन और दौलत 
गँवाया उस ने है चैन-ओ-सुकून क्यों फिर भी 
*
दर-ए-ख़ुदा है फ़क़त इक मुक़ाम दुनिया में 
जहाँ ग़रीब नज़र आते और क़ादिर* भी (*शक्तिशाली )
*
कहो इक ऐसी ग़ज़ल लोग याद रख पाएं 
'तुरंत' नाम का होता था एक शाइर भी 
*
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी 
०३ /०१/२०१९

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 702

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 7, 2019 at 1:30am

बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें जनाब Md. anis sheikh  साहेब 

Comment by Md. Anis arman on January 6, 2019 at 9:01pm

जनाब "तुरंत "साहब आदाब ,बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये 

Comment by राज़ नवादवी on January 6, 2019 at 4:42pm

आपका स्वागत है ब्रदर. सादर 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 6, 2019 at 2:35pm

राज़ नवादवी साहेब ,

बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें

Comment by राज़ नवादवी on January 6, 2019 at 1:40pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर काबिले तहसीन. दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर. 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 4, 2019 at 8:55pm

आदरणीय Mahendra Kumar जी सादर नमन, हौंसलाफ़ज़ाई के लिए तहेदिल शुक्रिया

Comment by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 7:49pm

किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी 

ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी 
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी

जनाब कीजिये इज़हार-ए-प्यार कुछ ऐसे 
ख़मोश लब हों मगर हो ये प्यार ज़ाहिर भी 

बहुत ख़ूब! इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी. सादर.

Comment by Samar kabeer on January 4, 2019 at 10:52am

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद !

'मद्दाह' साहिब की लुग़त अच्छी है लेकिन बहुत सी कमियां हैं उसमें,और हिन्दी उर्दू वाली कोई लुग़त अभी नज़र से नहीं गुज़री, फिल्हाल ओबीओ की लुग़त से ही काम चलाइये ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:14pm

आदरणीय समर कबीर साहेब आदाब | ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत बहुत आभार | शुरू और शुरू 'अ तथा सही और सहीह इस तरह से वजन निकालने का हुनर अभी सीख नहीं पाया हूँ | यह मानने में मुझे कोई संकोच नहीं है | क्योंकि मैं उर्दू भाषा और लिपि (जो प्रयोग होती है ,वैसे उर्दू की कोई लिपि नहीं है  शायद )वह नहीं जानता | लुग़त भी मद्दाह की प्रयोग करता हूँ इसलिए इस प्रकार की  गलतियां सम्भव हैं | मद्दाह की लुग़त को कुछ लोग प्रामाणिक नहीं मानते लेकिन मेरा कुछ हद तक मक़सद हल होता है | आपकी इस्लाह सर आँखों पर | जैसे जैसे ऐसे शब्दों के वजन से परिचित होता जाऊंगा भविष्य में सुधार करता रहूँगा | ये आपसे मेरा वादा है | फ़िलहाल आपकी इस्लाह के मुताबिक सुधार कर रहा हूँ | 

Comment by Samar kabeer on January 3, 2019 at 9:47pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

एक बात आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा :-

शुरू जहाँ से किया था सफ़र न सोचा था'

इस मिसरे में आपने 'शुरू' शब्द का वजन 12 लिया है जबकि इसका सहीह वज़न है "शुरू'अ"121 इस लिहाज़ से मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,इस मिसरे को यूँ किया जा सकता है:-

"किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
12 minutes ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
15 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
15 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service