(1212 1122 1212 22 /112 )
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बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )
फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी
*
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी
*
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी
*
किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या हो जब
सुकूं तलाशते देखे हैं मैंने आमिर* भी (*शासक )
*
बहुत है मुश्किलें लेकिन ये दिल समझता है
क़फ़स में क़ैद भी आज़ाद एक ताइर* भी (*पंछी )
*
जनाब कीजिये इज़हार-ए-प्यार कुछ ऐसे
ख़मोश लब हों मगर हो ये प्यार ज़ाहिर भी
*
कमाई इतनी है शुह्रत ज़मीन और दौलत
गँवाया उस ने है चैन-ओ-सुकून क्यों फिर भी
*
दर-ए-ख़ुदा है फ़क़त इक मुक़ाम दुनिया में
जहाँ ग़रीब नज़र आते और क़ादिर* भी (*शक्तिशाली )
*
कहो इक ऐसी ग़ज़ल लोग याद रख पाएं
'तुरंत' नाम का होता था एक शाइर भी
*
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
०३ /०१/२०१९
(मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें जनाब Md. anis sheikh साहेब
जनाब "तुरंत "साहब आदाब ,बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये
आपका स्वागत है ब्रदर. सादर
राज़ नवादवी साहेब ,
बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर काबिले तहसीन. दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर.
आदरणीय Mahendra Kumar जी सादर नमन, हौंसलाफ़ज़ाई के लिए तहेदिल शुक्रिया
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी
जनाब कीजिये इज़हार-ए-प्यार कुछ ऐसे
ख़मोश लब हों मगर हो ये प्यार ज़ाहिर भी
बहुत ख़ूब! इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी. सादर.
मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद !
'मद्दाह' साहिब की लुग़त अच्छी है लेकिन बहुत सी कमियां हैं उसमें,और हिन्दी उर्दू वाली कोई लुग़त अभी नज़र से नहीं गुज़री, फिल्हाल ओबीओ की लुग़त से ही काम चलाइये ।
आदरणीय समर कबीर साहेब आदाब | ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत बहुत आभार | शुरू और शुरू 'अ तथा सही और सहीह इस तरह से वजन निकालने का हुनर अभी सीख नहीं पाया हूँ | यह मानने में मुझे कोई संकोच नहीं है | क्योंकि मैं उर्दू भाषा और लिपि (जो प्रयोग होती है ,वैसे उर्दू की कोई लिपि नहीं है शायद )वह नहीं जानता | लुग़त भी मद्दाह की प्रयोग करता हूँ इसलिए इस प्रकार की गलतियां सम्भव हैं | मद्दाह की लुग़त को कुछ लोग प्रामाणिक नहीं मानते लेकिन मेरा कुछ हद तक मक़सद हल होता है | आपकी इस्लाह सर आँखों पर | जैसे जैसे ऐसे शब्दों के वजन से परिचित होता जाऊंगा भविष्य में सुधार करता रहूँगा | ये आपसे मेरा वादा है | फ़िलहाल आपकी इस्लाह के मुताबिक सुधार कर रहा हूँ |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
एक बात आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा :-
' शुरू जहाँ से किया था सफ़र न सोचा था'
इस मिसरे में आपने 'शुरू' शब्द का वजन 12 लिया है जबकि इसका सहीह वज़न है "शुरू'अ"121 इस लिहाज़ से मिसरा बह्र से ख़ारिज हो रहा है,इस मिसरे को यूँ किया जा सकता है:-
"किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था'
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