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ये दुआ है कि ख़ुशी आपके घर में आये (३२)

(२१२२ ११२२ ११२२ २२/११२ )

.

ये दुआ है कि ख़ुशी आपके घर में आये
हादिसा पेश न जीवन के सफ़र में आये
**
अश्क आँखों में अगर हों तो ख़ुशी के हों बस  
और सैलाब न अब दीदा-ए-तर में आये 
**
प्यार की राह को आसाँ न समझना कोई
हौसला हो वही इस राह-गुज़र में आये
**
कोशिशें लाख  करे तो भी नहीं है मुमकिन 
ताब-ए-ख़ुर्शीद तो हरगिज़ न क़मर में आये 
**
ग़ैर के ऐब को आसाँ है नज़र में रखना
ऐब ख़ुद का न किसी की भी नज़र में आये
**
अपने हाथों से लुटा दूं ज़र-ए-उल्फ़त सबको 
कोई ऐसा भी हुनर दस्त-ए-हुनर में आये 
**
मांग लें आप मुआफ़ी तो बुरा ही क्या है 
गर ख़ता आपकी कोई जो ख़बर में आये 
**
इसलिए हाज़िरी देते हैं ख़ुदा के दर पर 
ताकि हर रोज़ कमी उनकी न ज़र में आये 
**
कौन शीशे के घरोंदे में लगाएगा शजर
कौन रहने को 'तुरंत' आइना-घर में आये
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी |
२४/०२/२०१९

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 1, 2019 at 7:18pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी ,

स्नेहिल उद्गारों से सुसज्जित सराहना के लिए  ह्रदय तल से आभार एवम सादर नमन

|

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2019 at 3:40pm

आ. भाई गिरधारी जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on February 25, 2019 at 3:48pm
आदरणीय Samar kabeerसाहेब आदाब | हौसला अफजाई और ज़र्रानवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया | आपके द्वारा सुझाये सभी संधोधन कर रहा हूँ |
Comment by Samar kabeer on February 25, 2019 at 2:42pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'लाख कोशिश भी करे तो भी सदा नामुमकिन'

इस मिसरे को अगर यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-

'लाख कोशिश करे तो भी ये नहीं है मुमकिन'

' ऐब ख़ुद का न किसी के भी नज़र में आये'

इस मिसरे में 'के' की जगह "की" करना उचित होगा ।

'मांग लेना कभी माफ़ी है बुरी बात नहीं' 

इस मिसरे में सहीह शब्द "मुआफ़ी" है,देखियेगा ।

'इसलिए हाज़िरी देते हैं ख़ुदा के दर वो'

इस मिसरे में 'दर वो' को "दर पर" कर लें । 

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