भीड भरे रस्ते पे एक दिन, बरसोँ पुराना दोस्त मिला । चेहरे से मुस्कान थी गायब, स्वर भी कुछ रुखा सा मिला । ।
मैंने पूछा कैसे हो तुम, वो बोला कुछ ठीक नहीं । मैंने पूछा और हाल-ए-इश्क, सोच के बोला ली भीख नही । ।
उसके इस उत्तर से अचम्भित, ठिठक गया मैं चलते-चलते । फिर काँधे पे हाथ रख पूछा, किसी से नहीं क्या मिलते-जुलते । ।
एक लम्बी ले शवाँस वो बोला, फिर राज़ दहर का सगरा खोला । मैंने जिसको चाहा,उसका मन, और किसी की चाहत में डोला । । अब धीरे धीरे उमर जा रही, आस का दीपक नही पा रही । अंत समय का कोई ना साथी, दिल की धड्कन बैठी जा रही । । अब राह मिले ना मंज़िल कोई, फिर भी ढुंढू मिल जाए कोई । जिससे दिल के मैं तार मिला दूँ, मैं भी हूँ इंसा दिखला दूँ । ।
इतना कहकर वो चुप हो गया, माज़ी में मैं भी था खो गया । अगले पल जब तंद्रा टूटी, दर्द था उसका जो मेरा हो गया । ।
जीवन की आपाधापी में, हम भूल गये सब रिश्ते नाते । हाय हैलो भी दूरभाष पर, करके हम सब रस्म निभाते । । -प्रदीप देवीशरण भट्ट- मौलिक व अप्रकशित
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Comment
समर जी शुक्रिया
आभार हरिओम जी
शुक्रिया नीलम जी,
अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय प्रदीप भट्ट जी।
जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
बहुत खूब। हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप देवीशरण भट्ट साहिब।
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