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जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा - सलीम 'रज़ा' रीवा

2122 1122 1122 22 

मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा 
लोग कहते हैं सरे आम दिवाना तेरा


रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

छीन लेगा ये मेरा होश यकीनन इक दिन 
यूँ ख़यालों में शब-ओ-रोज़ का आना तेरा

होश वालों को कहीं फिर न बना दे  पागल
महफिले हुस्न में बन ठन के यूँ आना तेरा  

भूल पाना बड़ा मुश्किल है वो दिलकश मंज़र
मुस्कुरा कर लब-ए-नाज़ुक को दबाना तेरा

--

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by SALIM RAZA REWA on October 8, 2019 at 7:35am

बहुत अच्छा मशविरा है मोहतरम समर साहब बहुत बहुत शुक्रिया, नवाज़िश 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 8, 2019 at 7:34am

बहुत अच्छा मशविरा है मोहतरम तस्दीक साहब, शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 7, 2019 at 9:30am

जनाब सलीम रज़ा साहिब आ दाब, अच्छी गज़ल हुई है मुबारकबाद कुबूल फरमाएं l शेर 3 के सानी को यूँ भी कर सकते हैं 

"हर घड़ी मेरे ख़्यालों में यूँ आना तेरा" 

Comment by Samar kabeer on October 7, 2019 at 7:35am

'यूँ ख़यालों में सुबो शाम का आना तेरा'

ये मिसरा अब भी ग़लत है "सुबो शाम''?,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'यूँ ख़यालों में शब-ओ-रोज़ का आना तेरा'

'महफिलें हुस्न में बन ठन के यूँ आना तेरा'

इस मिसरे में 'महफिलें' बहुवचन हो रहा है,इसे "महफ़िल-ए-" कर लें । 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:43pm

ग़ज़ल तक पहुँचने के लिए बहुत शुक्रिया जनाब समर साहब , जी मैं सेट करता हूँ ,

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:42pm

बहुत शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी

Comment by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:41pm

बहुत शुक्रिया बृजेश कुमार 'ब्रज' जी

Comment by TEJ VEER SINGH on October 5, 2019 at 2:01pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रजा रीवा जी। बेहतरीन गज़ल।

रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 
जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा

Comment by Samar kabeer on October 4, 2019 at 11:26am

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,बधाई स्वीकार करें ।

'यूँ ख़्यालों में सुब्ह--शाम का आना तेरा'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।

'अहले महफ़िल को ये दीवाना बना रक्खा है
महफिलें हुस्न में बन ठन के यूँ आना तेरा'

इस शैर के दोनों मिसरों में 'महफ़िल' शब्द खटकता है,और ऊला में 'रक्खा है' को "रखता है" करना उचित होगा,देखियेगा ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 1, 2019 at 12:05pm

वाह क्या कहने बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है ज़नाब सलीम साहब 

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