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मेघदूत (पूर्व मेघ खंड के 6 से 8 टेक छंदों का काव्यानुवाद)

विरहाकुल था दीन यक्ष उसको कुछ समझ नहीं आया

वारिवाह से गुह्य याचना ही करना उसको भाया

 

लोक-ख्यात पुष्कर-आवर्तक जलधर बड़े नाम वाले

उनके प्रिय वंशज हो तुम हे वारिवाह ! काले-काले

 

प्रकृति पुरुष तुम कामरूप तुम इन्द्रसखा तुमको जानूं

विधिवश प्रिय से हुआ दूर हूँ तुम्हे मीत हितकर मानूं

 

तुम यथार्थ परिजन्य मूर्त्त हो मैं याचक बनकर आया

गुणीजनों से व्यक्त याचना करना ही मुझको भाया

 

वही याचना श्रेयस्कर है की जाये अधिकारी से

भले विफल हो जाये अपने भाग्य लेख अपकारी से

 

किन्तु याचना कभी अधम से करना उचित नही होता

अगर सफल हो जाये तो भी भाग्यहीन मानव रोता

करते हो तुम तृप्त मेघ ! जो भी संतप्त दुखारी हो

रक्षक हो तुम सब जोवों के दानवीर उपकारी हो

 

विरही मैं कुबेर से शापित मुझ पर तनिक तरस खाओ

मेरा यह सन्देश प्रिया तक किसी भाँति भी पंहुचाओ

 

यक्षराज की ख्यात पुरी है अलका तक तुमको जाना

जहाँ रम्य उद्यान बीच में हंसती सुमनावलि नाना

 

विद्यमान शिव के मस्तक से छिटक चांदनी की धारा

धवलित करती है भवनों को भर देती उनमे पारा

 

 

घुमड़ उठोगे जब अम्बर पर समझ पवन की चालों को

फेकेंगी ऊपर वनितायें घुंघराले निज बालों को

 

जोप्रोषितपतिकाओं के मुख पर लट सी लटकी होंगी

इकटकनभ में देखतुम्हेंजो सपनो में भटकी होंगी

 

वे सहेजतींआशा मन में प्रिय अवश्य होंगे आते

प्रेमीजन सुनकरघमंड घन कैसे फिरथिररह पाते

 

और प्रवासी कब पत्नी से उदासीन रह पायेगा

पराधीन जीवन मुझ जैसा शापित किसको भायेगा

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on October 15, 2017 at 8:40pm
आ. गोपाल नारायण जी,
ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई.
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2017 at 4:38pm

आदरणीय गोपाल सर ..हिंदी के बेहतरीन शब्दों से ओतप्रोत इस शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by Samar kabeer on October 11, 2017 at 2:49pm
जनाब गोपाल नारायण जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 11, 2017 at 2:40pm

बहुत सुंदर एक एक अक्षर एक दृश्य दिखा रहा है | साधुवाद आदरणीय |

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