2122 ----2122 -----2122 ----212
आप की गलियों के कुछ मंज़र हमें अच्छे लगे
ठोकरें खाते हुए पत्थर हमें अच्छे लगे
सुनके हर्फ़े आरज़ू माथे पे शिकनें पड़ गयीं
हुस्न के बिगड़े हुए तेवर हमें अच्छे लगे
इस तरफ आहो फ़ुग़ाँ और उस तरफ रंगीनियाँ
अहलेज़र से मुफ़लिसों के घर हमें अच्छे लगे
नर्म गद्दों के बजाये सो गए इक टाट पर
फ़ाक़ाकश मज़दूर के बिस्तर हमें अच्छे लगे
वक़्ते रुख़सत ग़म के मारे आगये जो आँख में
वो सरे मुज़्गाँ हसीं गौहर हमें अच्छे लगे
झुक गए जो ज़ुल्म के आगे वो सर सर ही न थे
जो वतन पे कट गए वो सर हमें अच्छे लगे
कारवां तस्दीक़ जो मंज़िल से पहले लूट लें
किस तरह कह दें के वो रहबर हमें अच्छे लगे
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब मुकेश श्रीवास्तव साहिब ,.... हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया /
जनाब नीलेश साहिब ,.... हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया / बद्र साहिब के जिस शेर का आपने ज़िक्र किया है उस में आँखों शब्द का इस्तेमाल किया गया है / पहले मिसरे की जब उर्दू में लिख कर तक़्ती करेंगे तो आँखों शब्द में हे और नून गुनना ही गिरेंगे इन दोनों के बीच वाउ नहीं गिरेगा / जैसा कि आदरणीय गिरराज साहिब ने फ़रमाया उर्दू और हिंदी लिपि का फ़र्क़ है /...... सादर
झुक गए जो ज़ुल्म के आगे वो सर सर ही न थे
जो वतन पे कट गए वो सर हमें अच्छे लगे waah waa mitra achhee gazal
अच्छी ग़ज़ल हुई है .. बधाई ..
बद्र साहब कहते हैं..
कभी यूँ भी आ मेरी आँखों में कि मेरी नज़र को खबर न हो
मुझे इश्तेहारों सी लगती हैं ये मुहब्बतों की कहानियाँ ...
यहाँ खों और रों में वाव और नून गुन्ना दोनों हैं फिर भी गिरा के पढ़ा गया है
सादर
आदरणीय तस्दीक भाई , मुझे लगता है , नियम मे ये अंतर लिपि ( भाषा ) के कारण आ रहा है , उर्दू लिपि मे वाउ और नून गुन्ना दोनो हरूफ मे गिने जाते हैं , लेकिन हिन्दी लिपि मे अनुस्वार ( ऊपर बिन्दी लगाना ) को हर्फ मे नही गिनते । और इसमे ओ की मात्रा के जैसे मात्रा गिरा सकते हैं , अभी आप हिन्दी लिपि मे लिख रहे हैं , अतः आप मज़दूरों मे रों की मात्रा गिरा सकते हैं , ऐसा मेरा ख़याल है । बाक़ी आप जैसा सही समझें वैसा कीजिये ।
मोहतरम जनाब गिरिराज साहिब , ..... मश्वरे और हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया। .... जहाँ तक मेरी जानकारी है नून गुनना और वाउ एक साथ नहीं गिराये जा सकते। .... मज़दूरों में दोनों एक साथ हैं
आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन ग़ज़क हुई है , सभी अशआर अच्छे लगे , आपको गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ ।
मेरे खयाल से मज़दूरों करने से बहर से बाहर नही होगा मिसरा
फ़ाक़ा कश मज़ / दूरों के बिस/ तर हमें अच/ छे लगे -- रों मे मात्रा गिराई जा सकती है , ये नियम के खिलाफ नही है ।
जनाब जयनित कुमार साहिब , हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया। . ....
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