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जन भ्रमित है , मन भ्रमित है -- डॉ o विजय शंकर

जन भ्रमित है ,
मन भ्रमित है ,
जन-इच्छा , बनी नहीं ,
जन-शक्ति , जगी नहीं ,
जनतंत्र है , तंत्र को
जन की ही खबर नहीं ,
कोई फ़िकर नहीं |
तंत्र जन जन से दूर है ,
जन तंत्र से मजबूर है ,
विवश है, लाचार है,
डरा ,सहमा , बीमार है,
कुछ कह नहीं पाता ,
जनादेश देने वाला,
आदेश , किसी को ,
दे नहीं पाता ,
तंत्र व्यस्त है , स्वयं में मस्त है ,
जन उपेक्षित है , हालात से त्रस्त है ,
तंत्र क्या क्या पा रहा है,
जन क्या क्या खो रहा है ,
दोनों को पता नहीं ,
वो हँस रहा है, वो रो रहा है,
सेवक अलमस्त सो रहा है,
मालिक छुप के रो रहा है||
ये कर है, वो कर है ,
हर सेवा पर कर है ,
करों की भरमार है ,
सुविधा-शुल्क की मार है ,
जन-सुविधा जनाचार है ,
है ,कहीं भी है , तो क्यों ,
क्यों, ये अनाचार है।

ये कौन गुनगुना रहा है ,
कौन नांच - गा रहा है ,
दूर कौन बँसुरी बजा रहा है ,
ये धुंआ कहाँ , कहाँ से आ रहा है ,
उसकी नज़र में क्या है , जो
उसे ही ये नज़र नहीं आ रहा है।
उसे ये नज़र क्यों नहीं आ रहा है।

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 10:23am
आदरणीय प्रतिभा त्रिपाठी जी ,
रचना को स्वीकार करने और बधाई हेतु आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 10:20am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,
सद्भावनाओं एवं बधाई हेतु ह्रदय से आभार , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:05am

आदरणीय विजय भाई , वर्तमान मे व्याप्त विडंबनाओं को सुन्दर शब्द मिले हैं , बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 10:17pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी, रचना को स्वीकृति प्रदान करने एवं बधाई हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 10:11pm

आज के हालात को बयां करती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,हार्दिक बधाई आ० डॉ. विजय शंकर जी  

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 6:39pm
रचना को स्वीकृति प्रदान करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार, आदरणीय लक्षमण रामानुज लडीवाला जी, आपकी बधाई केलिए भी धन्यवाद ,सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 6:36pm
रचना की गहराई को स्वीकृति प्रदान करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार प्रिय जीतेन्द्र जी, आपकी बधाई केलिए भी धन्यवाद ,सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 6:32pm
रचना की स्वीकृति हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 21, 2015 at 3:36pm

होने को तो जनतंत्र, जन से है. किन्तु आपकी गहन अभिव्यक्ति पूर्ण स्पष्ट करती प्रतीत हो रही है कि तंत्र व्यस्त भी है और मस्त भी.

सच को उजागर करती रचना पर बधाई स्वीकारें, आदरणीय डा.विजय जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 12:36pm

जनतंत्र है , तंत्र को
जन की ही खबर नहीं ,
कोई फ़िकर नहीं |
तंत्र जन जन से दूर है ,
जन तंत्र से मजबूर है ,----- बहुत  सुंदर | आज के तंत्र पर अच्छी  रचना के लिए हार्दिक  बधाई श्री विजय शंकर जी 

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