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कटाक्ष है और बहुत सुंदर है |अलग-अलग पेशेवरों का चित्रण है |खुद को पुरस्कार देना ,जुगाड़-करके पुरस्कार करना .अपना महिमा मंडन करना और दुसरे को हेय समझना यही सब ट हो रहा है |सुंदर और महत्त्वपूर्ण रचना |
प्रतिभा को हम तभी जानते हैं
जब दूसरे कोई विदेशी
पहले उसे पहचानते हैं ,
तब बड़े जोश खरोश से हम
उसे अपना अपना चिल्लाते हैं.-------विजय सर i -------- बहुत सुन्दर विचार i सादर i
पुरोधाओं को सम्मान देने के
हमारे अपने ख़ास तरीके हैं ,
नेत्र-हीन भिखारी को भीख
नहीं देना होता है तो
सूरदास आगे बढ़ो ,कह कर
हम पुरोधा कवि को सम्मान देते हैं ,
उनके प्रति श्रद्धा-सुमन-समर्पण को
हम यूँ प्रदर्शित करते हैं।
अति सुन्दर पंक्तिया आदरणीय डॉo विजय शंकर जी ......जीवन के ठोस धरातल पर मनुष्य का ये वयवहार कही न कही मन को जकझोरता है.
लोगों को हिफाजत दे नहीं पाते ,
वो हादसे के शिकार हो जाएँ
तो बड़ी बड़ी शोक सभाएं ,
कैंडल-मार्च निकलवाते हैं ,
और किया तो कोई गली
सड़क उसके नाम करवाते हैं।,,,,,,,,,,वाह !! अत्यंत सुन्दर भाव|
आदरणीय डॉo विजय शंकर सर ,रचना के भाव मन को झकझोरते है ,सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई आपको , मुझे लगता है शिल्प पर और कार्य हो सकता है ,सादर !
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