For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बातों ही बातों में उनसे प्यार हुआ - सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2 ..

बातों ही बातों में उनसे प्यार  हुआ.

ये मत  पूछो  कैसे कब इक़रार हुआ

.      

जब से आँखें उनसे मेरी चार हुईं.

तब से मेरा जीना भी दुश्वार हुआ

.

वो शरमाएँ जैसे  शरमाएँ कलियाँ.

रफ्ता रफ्ता चाहत का इज़हार हुआ

.

दिल की बातें वो  ऐसे पढ़  लेता है.

दिल न हुआ जैसे कोई अख़बार हुआ

.

उनसे  ही खुशियाँ है मेरे आंगन में.

उनसे ही  रौशन मेरा घर बार हुआ

.

आँखों में बस उनका चेहरा दिखता है.

शोख़ हसीना का जब से दीदार हुआ

....

मौलिक व अप्रकाशित

Gazal by salimrazarewa

Views: 1024

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 29, 2017 at 6:05pm
जनाब सलीम साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ
शेर 2 उला मिसरे में आपने आँखें इस्तेमाल किया है इसलिए हुई को हुईं
करलें | उला मिसरे के हिसाब से सानी मिसरा यूँ होना चाहिए " तब से
मेरा जीना भी दुश्वार हुआ " आखरी शेर में चेहरा को चहरा करलें ----
Comment by Afroz 'sahr' on October 29, 2017 at 5:29pm
जनाब सलीम रेवा साहिब इस रचना पर मेंरी और से बधाई स्वीकार करें।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 27, 2017 at 7:36pm
आ. नीलेश जी,
मेरा इस पर ध्यान नहीं गया,
आपकी पारखी नज़र के लिए शुक्रिया,
शुरु में ( ये) लगाने से काम बन जाएगा देखिएगा..
(ये मत पूंछो कैसे कब इक़रार हुआ)
Comment by SALIM RAZA REWA on October 27, 2017 at 7:36pm
आ. नीलेश जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on October 27, 2017 at 7:28pm
जनाब आरिफ साहब,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2017 at 6:51pm

आ. सलीम साहब 
अच्छी ग़ज़ल है ..
.
मत पूंछो की कैसे कब इक़रार हुआ ..यहाँ की नहीं कि आएगा और बहर गड़बड़ हो जायेगी ..
की को कि पढ़ा जा सकता है लेकिन कि को की (मात्रा वृद्धि) नहीं पढ़ा जा सकेगा
कुछ और सोचिये 
अखबार वाले शेर के लिए विशेष बधाई 
सादर 

Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:24pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब, बहुत ही शानदार ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब है । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 8, 2017 at 6:41am
जनाब नादिर खान साहिब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on October 8, 2017 at 6:40am
आदरणीय वीनस जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया इस ग़ज़ल पे बहुत दिनो बाद आया माफ़ी चाहता हूँ.
Comment by वीनस केसरी on February 12, 2013 at 12:19am
जब  से आँखे उनसे   मेरी    चार हुई !
इक पल भी जीना मेरा दुश्वार हुआ !!
 

वाह वा क्या बात है शानदार रवायती ग़ज़ल कही है
बहुत खूब सलीम जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
26 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
9 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service