22 22 22 22 22 2
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दर-दर फिरते लोगों को दर दे मौला :
बंजारों को भी अपना घर दे मौला :
जोऔरों की खुशियों में खुश होते हैं :
उनका भी घर खुशियों से भर दे मौला :
दूर गगन में उड़ना चाहूँ चिड़ियों सा :
मुझ को भी वो ताक़त वो पर दे मौला :
ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी :
अम्नो अमां की यूं बारिश कर दे मौला :
भूके प्यासे मुफ़लिस और यतीम हैं जो :
नज़्र-ए-इनायत उनपर भी कर दे मौला :
जो करते हैं खून ख़राबा जुल्मो सितम :
उन के भी दिल में थोडा डर दे मौला :
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय ,तेज वीर सिंह * साहब कलाम पसंद आया इसके लिए दिली शुक्रिया ,
उम्मीद है आपकी दुआओं का साया मेरे सर पर हमेशा क़ाइम रहेगा !
हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा साहब जी!बेहतरीन गज़ल!खुदा करे गज़ल में की गयी सभी दुआयें कुबूल हो जांयें!
आदरणीय शुक्ला जी
आपकी दुआओं के लिए बारहा दिली शुक्रिया.
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