For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - दर-दर फिरते लोगों को : सलीम रज़ा रीवा

22 22 22 22 22 2

.

दर-दर फिरते लोगों को दर दे मौला :
बंजारों को  भी अपना घर  दे  मौला :

जोऔरों की खुशियों  में खुश होते  हैं :
उनका भी घर खुशियों से भर दे मौला :

दूर गगन में उड़ना चाहूँ   चिड़ियों सा :
मुझ को भी वो ताक़त वो पर दे मौला :

ज़ुल्मो सितम हो ख़त्म न हो दहशतगर्दी :
अम्नो अमां की यूं बारिश  कर  दे मौला :

भूके प्यासे मुफ़लिस और  यतीम हैं जो :
नज़्र-ए-इनायत उनपर भी कर दे मौला :


जो करते हैं खून ख़राबा  जुल्मो सितम :
उन  के भी दिल में थोडा डर दे मौला :
----------------------------------------
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 760

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2016 at 8:27pm
जनाब समर साहब इनायत के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by Samar kabeer on January 24, 2016 at 5:58pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,पहली बार आपकी ग़ज़ल से रु ब रू हुआ हूँ,बहुत अच्छी ग़ज़ल से नवाज़ आपने मंच को,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं |
चश्म-ए-इनायत और नज़्र-ए-इनायत एक ही बात है,जैसे"चश्म-ए-बद दूर और नज़्र-ए-बद दूर एक ही है,"चश्म"यानी आँख "नज़र"यानी निगाह,बीनाई,देखियेगा|
Comment by SALIM RAZA REWA on January 23, 2016 at 7:00pm

आदरणीय ,तेज वीर सिंह * साहब कलाम पसंद आया इसके लिए दिली शुक्रिया ,
उम्मीद है आपकी दुआओं का साया मेरे सर पर हमेशा क़ाइम रहेगा !

Comment by TEJ VEER SINGH on January 23, 2016 at 5:48pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सलीम रज़ा साहब जी!बेहतरीन गज़ल!खुदा करे गज़ल में की गयी सभी दुआयें कुबूल हो जांयें!

Comment by SALIM RAZA REWA on January 23, 2016 at 5:47pm

आदरणीय शुक्ला जी

आपकी दुआओं के लिए बारहा  दिली  शुक्रिया.

Comment by Ravi Shukla on January 23, 2016 at 5:23pm
आदरणीय सलीम रज़ा जी बहुत बहुत आभार आपका इनायत को और भी विस्तृत रूप में लिया हैं आपने ये जान कर सोच को एक और दिशा मिली । आपका धन्यवाद
Comment by SALIM RAZA REWA on January 23, 2016 at 12:34pm
जनाब उस्मानी साहब,
आपकी दुआओं के लिए तहे दिल से शुक्रिया .
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 23, 2016 at 12:03pm
तहे दिल दुआओं से भरी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद आपको जनाब सलीम रज़ा साहब--
वााह...
//जो करते हैं खून ख़राबा जुल्मो सितम
उनके भी दिल में थोडा डर दे मौला.
.//.._उम्मीद है ज़ल्द ही और भी बेहतरीन ग़ज़लों से नवाज़ेंगें।
Comment by SALIM RAZA REWA on January 23, 2016 at 8:58am
आदरणीय शुक्ला जी यक़ीनन आपकी बहुत ही पारखी नज़र है, ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपको दिली शुक्रिया, नज़रें इनायत... इनायत की नज़र
(चश्मे इनायत - बे शुमार इनायत) करम का फव्वारा, a fountain
बाकी आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया..
Comment by Ravi Shukla on January 22, 2016 at 9:41pm
आदरणीय सलीम रज़ा जी बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने शायद आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ने का मौका मिला है । मतले से आखिरी शेर तक सुन्दर कथ्य लिया है आपने । एक उत्सुकता है नज़रे इनायत भी कहा जा सकता है आपने चश्मे इनायत लिया है । हालाँकि दोनी के मानी लगभग एक ही है । अगर स्पष्ट करे तो जानकारी में इज़ाफ़ा होगा । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service