कर भला कर भला गर भला कर सके....
नफरतो को मिटा गर भला कर सके....
नाउम्मीदी भरा कोई जब भी मिले....
आस उसको बंधा गर भला कर सके....
जब कभी कोई अंधा दिखे राह में....
पार उसको लगा गर भला कर सके....
हाथ फैलाए जब कोई भूखा दिखे....
भूख उसकी मिटा गर भला कर सके....
तन किसी का खुला देख ले गर कभी....
पेरहन कर अता गर भला कर सके....
जिंदगी की मिटा दें हर इक तीरगी....
दीप ऐसे जला गर भला कर सके....
राज हर इक कदम आंसुओं को यहाँ....
मुस्कुराना सिखा गर भला कर सके....
Comment
kya baat hai behad saalenta kaa parichay deti gamabheer chintan ko piroyi hue umda ghazal ke liye badhai aapko
बेहद सादगी से बेहद गहरी बातें कह दीं भाई राज बाजपेई जी। आपके अश'आर न सिर्फ दिल को छूते ही हैं बल्कि सुकून भी पहुंचाते हैं। इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मेरी दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ।
bahut sundar ash'aar. nek ghazal.
badhai.
बहुत बढ़िया ! बधाई !
कर भला कर भला गर भला कर सके....
नफरतो को मिटा गर भला कर सके....
नाउम्मीदी भरा कोई जब भी मिले....
आस उसको बंधा गर भला कर सके....
प्रिय राज जी ...बहुत सुन्दर सीख देती शेरो शायरी आप की ..काश लोग अपनाएं और ये लोगों का भला कर सके ...जय श्री राधे
तन किसी का खुला देख ले गर कभी....
पेरहन कर अता गर भला कर सके....
जिंदगी की मिटा दें हर इक तीरगी....
दीप ऐसे जला गर भला कर सके....क्या खूबसूरत अशआर कहें हैं आपने एक बेहतरीन गजल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आपके अमूल्य कमेन्ट के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा राजेश कुमारी जी....
तन किसी का खुला देख ले गर कभी....
पेरहन कर अता गर भला कर सके....bahut khoob ...umda ghazal
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