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अजय गुप्ता 'अजेय
  • Male
  • Karnal
  • India
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अजय गुप्ता 'अजेय's Discussions

आयोजन कैलंडर संबंधित
7 Replies

आदरणीय प्रबंधन समूह,मेरा एक सुझाव है जिसे आपके विचारार्थ रखना चाहता हूँ । ओबीओ में पूर्व कि भाँति आयोजन कैलंडर के प्रकाशन कि आवश्यकता महसूस हो रही है। पहले कि तरह यदि वेबसाईट पर ही हर महीने कि 4-5…Continue

Started this discussion. Last reply by surender insan Oct 9, 2023.

कैलेंडर

नौ तारीख तक कैलेंडर न आने से असुविधा होती है। यदि पहले से निर्धारित हो और 1-2 तारीख तक कैलेंडर आ जाए तो आसानी हो जाये।उम्मीद है आयोजक इस और ध्यान देंगेContinue

Started Apr 9, 2018

 

अजय गुप्ता 'अजेय's Page

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"उभयमार्ग ही अभयमार्ग --------------------------- शांति की बात कर रही दुनिया युद्ध में फिर भी मर रही दुनिया चाहती है कि हाथ मिल जाएँ पर बढ़ाने से डर रही दुनिया   इक तरफ़ आग है धमाके हैं उनकी नींदों पे रोज़ डाके हैं लुट रहीं चैन और ख़ुशी उनकी और…"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं आपके कथन का पूर्ण समर्थन करता हूँ आदरणीय तिलक कपूर जी। आपकी टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि उर्दू में कईं ध्वनियाँ (देवनागरी अनुसार) एक से अधिक प्रकार से भी लिखी जाती हैं और उनमें अंतर कर पाना अच्छे-खासे उर्दू जानकार के लिए भी सरल…"
May 5
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी निर्णय लिया उसका उन्हें अधिकार है और हम सब उसे मानने के लिए बाध्य। वो कुछ करेंगें मंच की बेहतरी के लिए ही करेंगें। लेकिन एक सदस्य होने के नाते उनकी इस…"
May 3
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके शब्द-शब्द से मेरी स्वीकृति है आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी।"
Apr 30
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सभी साथियों को प्रणाम, आदरणीय सौरभ जी ने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है और इस पर चर्चा आवश्यक है। अच्छा है कि अन्य वरिष्ठ साथी भी इस पर अपने विचार रख रहें हैं। इस अवसर पर मैं इस विषय पर भी और विषयांतर से भी कुछ कहना चाहूँगा जिसका उद्देश्य केवल मंच का…"
Apr 29
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय गिरिराज जी। बहुत बहुत बधाई। मूसीक़ी पर हुई चर्चा सार्थक रही। अमित भाई के सुझाव उत्तम है।"
Apr 26
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी"
Apr 26
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय नीलेश भाई, आप हमेशा से इस मंच के चुनिंदा उत्तम रचनाकारों में रहें हैं। आप की प्रतिभा, समझ, ज्ञान और योग्यता पर कोई प्रश्नचिन्ह ही नहीं है। आप को किसी से वज़ाहत करने का या ना करने का अधिकार है। आप ही की तरह मैं भी यहाँ से बहुत कुछ सीखा हूँ,…"
Apr 26
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"शुक्रिया आदरणीया "
Apr 26
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"शुक्रिया आदरणीय "
Apr 26
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"जी नहीं। बिल्कुल नहीं हैं। किसी के भी अनुभव किसी के भी ग़ुलाम नहीं हैं। सिर्फ़ इस मंच को ओपन मंच समझ कर, जो मुझे लगा वो साँझा किया था। जो अच्छा लगा वो अच्छा भी कहा था।बेहतर होता आप अपना दृष्टिकोण रखकर शंका का समाधान कर देते। पर आप तो मुझे मैनेजमेंट…"
Apr 26
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपकी इस बात का कोई अर्थ नहीं निकल रहा। घड़ी भर का फ़र्क़ न मुहावरा है ना कहावत।"
Apr 25
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"बहुत महीन लहजे की ग़ज़ल हुई है आदरणीय नूर साहब। बहुत बहुत बधाई। //तीसरा शेर बहुत कमाल। ख़ास दाद उसके लिए तमाम रात अकेला लड़ा अँधेरे से मेरे चिराग़ से सूरज की रौशनी न मिला..........वाह वाह //मुहब्बतों को निभाना किसी नदी की तरह कभी किनारों से अपनी तू…"
Apr 25
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। // दिल से आभार अमित भाई। आप ने इतनी बारीक़ी से ग़ज़ल को समय दिया।  बहुत धन्यवाद। न कोई अपना मिला कोई अजनबी न मिला है राह-ए-रूह यूँ तन्हा मुझे मैं ही न मिला — इसे मतला नहीं उला बदल कर शे'र बना…"
Apr 25
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"//अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकार करें.. ग़ज़ल पर अपनी प्रतिक्रिया देकर हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय नीलेश जी। //मतले में सच को हिमायती न मिला कहना अपरिपक्व है.. सच तो हमेशा से अकेला ही खड़ा रहा है .. आप का कहना दुरुस्त है, किन्तु सच्चाई को कईं बार…"
Apr 25
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"अच्छी ग़ज़ल हुई है ऋचा जी।  // तीसरा शेर अच्छा लगा // शेर 5 में अगर राज़ किसी को भी न मिला तो ये पता कैसे चला। कुछ परिवर्तन कि जरूरत महसूस हो रही है अभी सभी गुणीजनों की राय आनी है, उससे निश्चित निखार आएगा।"
Apr 25

Profile Information

Gender
Male
City State
Karnal (Haryana)
Native Place
Karnal
Profession
Business
About me
ग़ज़ल, कविता, लघुकथा लेखन में रूचि, 6 स्वतंत्र काव्य संग्रह प्रकाशित, 3 ऑनलाइन पुस्तकें प्रकाशित. एक काव्य संग्रह हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित. parivartaaajkal.com पर 'अजय की कलम' के शीर्षक से नियमित कॉलम

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अजय गुप्ता 'अजेय's Blog

ग़ज़ल (आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की)

कौशिशें इतनी सी हैं बस शायरी की 

आदमी सी फ़ितरतें हों आदमी की

हद जुनूँ की तोड़ कर की है इबादत

ख़ूँँ जलाकर अपना तेरी आरती की

गोलियों की ही धमक है हर दिशा में

और तू कहता है ग़ज़लें आशिक़ी की!

भूले-बिसरे लफ़्ज़ कुछ आये हवा में

कोई बातें कर रहा है सादगी की

इतनी लंबी हो गयी है ये अमावस

चाँद भी अब शक्ल भूला चांदनी की

बूँद मय की तुम पिलाओ वक़्ते-रुखसत

आखि़री ख्वा़हिश यही है ज़िन्दगी…

Continue

Posted on October 7, 2020 at 5:00pm — 6 Comments

ग़ज़ल (और कितनी देर तक सोयेंगें हम)

पल सुनहरी सुबह के खोयेंगें हम

और कितनी देर तक सोयेंगें हम।

रात काली तो कभी की जा चुकी

अब अँधेरा कब तलक ढोयेंगे हम।

जुगनुओं जैसा चमकना सीख लें 

रोशनी के बीज फिर बोयेंगे…

Continue

Posted on September 19, 2020 at 11:20pm — 16 Comments

एक ग़ज़ल (वैलेंटाइन डे स्पेशल)

एक ग़ज़ल।

**********

बँध गई हैं एक दिन से प्रेम की अनुभूतियाँ

बिक रही रैपर लपेटे प्रेम की अनुभूतियाँ

शाश्वत से हो गई नश्वर विदेशी चाल में

भूल बैठी स्वयं को ऐसे प्रेम की अनुभूतियाँ

प्रेम पथ पर अब विकल्पों के बिना जीवन नहीं

आज मुझ से, कल किसी से, प्रेम की अनुभूतियाँ

पाप से और पुण्य से हो कर पृथक ये सोचिए

लज्जा में लिपटी हैं क्यों ये प्रेम की अनुभूतियाँ

परवरिश बंधन में हो तो दोष किसको दीजिये

कैसे पहचानेंगे…

Continue

Posted on February 14, 2019 at 1:54pm — 4 Comments

एक ग़ज़ल (हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया)

हिलता है तो लगता ज़िंदा है साया

लेकिन चुप है, शायद गूँगा है साया

कहने में तो है अच्छा हमराही पर

सिर्फ़ उजालों में सँग होता है साया

सूरज सर पर हो तो बिछता पाँवों में

आड़ में मेरी धूप से बचता है साया

असमंजस में हूँ मैं तुमसे ये सुनकर

अँधियारे में तुमने देखा…

Continue

Posted on February 7, 2019 at 12:38pm — 3 Comments

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At 12:18pm on November 23, 2015,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका अभिनन्दन है.

ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए

 ग़ज़ल की कक्षा 

 ग़ज़ल की बातें 

 

भारतीय छंद विधान से सम्बंधित जानकारी  यहाँ उपलब्ध है

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आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ यहाँ पोस्ट (क्लिक करें) कर सकते है.

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ओबीओ पर प्रतिमाह आयोजित होने वाले लाइव महोत्सवछंदोत्सवतरही मुशायरा व  लघुकथा गोष्ठी में आप सहभागिता निभाएंगे तो हमें ख़ुशी होगी. इस सन्देश को पढने के लिए आपका धन्यवाद.

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

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2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

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