वाह जनतंत्र ,
कुर्सी स्वतंत्र ,
आदमी परतंत्र।
कल कुर्सी पर था
तो स्वतंत्र था ,
आज हट गया ,
परतंत्र हो गया।........... 1.
किसी को भी कहीं भी
यूं ही बुरा बोल देते हो।
सच , किसी बुरे को भी
कभी बुरा बोल लेते हो।...........2.
कुछ कर न कर
दूसरे के काम में
दखल जरूर कर।
अच्छा बोल , बुरा
बोल , कैसा भी बोल,
शहद में लपेट कर बोल l.......... 3.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आभार एवं धन्यवाद , आदरणीय नरेन्द्रसिंह चौहान जी , सादर।
khub sundar rachna
आदरणीय ब्रजेश कुमार जी , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
सटीक और सार्थक रचना के लिये बधाई आदरणीय।
आदरणीय लक्षमण धामी जी , आपका आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । अच्छी रजना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , मैं सकुशल हूँ और आशा है , आप भी स्वस्थ और प्रसन्न होंगे। रचना पर आपकी उपस्थित और सम्मान के लिए ह्रदय से आभार। इधर लेखन कुछ हो नहीं पा रहा है। कुछ व्यस्तता बढ़ गई है। बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
जनाब डॉ. विजय शंकर जी आदाब, काफ़ी समय बाद आपकी रचना पढ़ रहा हूँ, आप ख़ैरियत से हैं?
बहुत अच्छी रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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