For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पाँच दोहे : उच्छृंखल संकोच // -- सौरभ

चकाचौंध की चुप्पियाँ, मौन शोर का देश
अँधियारे के गाँव में, सूरज करे प्रवेश ।।
 
रोम-रोम में चाँदनी, घटता-बढ़ता ज्वार 
मधुर-मदिर खनकार का कितना चुप संसार !
 
मन में है विस्तार औ' आँखों में है लोच 
लेप रही तिर्यक लहर, उच्छृंखल संकोच 
 
अधरों पर मोती सजल, आँखों में उद्भाव
लरजन में उद्वेग का कारण व्यक्त झुकाव
 
सूरज कैसे देखिए, औंधा पड़ा उदास 
जुगनू की लफ्फाजियाँ, हुई प्रतीची खास 
****
-- सौरभ
 
(मौलिक और अप्रकाशित)
 
 
प्रतीची = पश्चिम 
 

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2021 at 1:43pm

आदरणीय इन्द्रविद्या वाचस्पति तिवारी जी, आपकी प्रभावी उपस्थिति का हार्दिक धन्यवाद. 

जिस तरह से आपने दोहा-विशेष के एक चरण को उद्धृत किया है, वह आपकी सचेत दृष्टि का परिचायक है. मैं आश्वस्त हूँ, कि आपको अन्य प्रस्तुतियाँ भी उचित प्रतीत हुई होंगीं. 

हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2021 at 12:37pm

//प्रेरणादायी दोहे हुए हैं //

आदरणीय लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’ जी, आपने प्रेरणादायी या प्रेरक दोहे कह कर स्वयं अपने प्रति उम्मीदें बढ़ा दी हैं. विश्वास है, शृंगारपरक दोहों की एका मधुरिम खेप आने वाली है. 

आपकी सम्मति का आभार. 

शुभातिशुभ

Comment by indravidyavachaspatitiwari on October 4, 2021 at 5:10am
अधरों पर मोती सजल आंखों में उद्भाव मन में एक ज्वार सा उमड़ने लगता है। रचना के लिए साधुवाद।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 2, 2021 at 10:20pm

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। उत्क्रिष्ट, मनमोहक और प्रेरणादायी दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 30, 2021 at 9:45pm

आदरणीय विजय निकोर सर, आपकी गुण-ग्राहकता का मैं सदैव कायल रहा हूँ. दोहों की प्रकृति और इनसे निस्सृत भावबोध को आपकी सुधी तार्किकता ने मान दिया, मेरा प्रयास सफल हुआ. 

मैं एक अंतराल बाद पुन: पटल पर सक्रिय हो रहा हूँ.

उत्साहवर्द्धन के लिए सादर आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 30, 2021 at 9:40pm

आदरणीय विजय शंकर जी, एक अरसे बाद अपनी किसी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पा रहा हूँ. आपने दोहों की प्रकृति पर अपनी आश्वस्ति दी, इस हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by vijay nikore on September 30, 2021 at 12:36pm

प्रिय मित्र सौरभ जी, हरि ॐ।

सभी दोहे ..एक से बढ़ कर एक... अजीब ताज़गी से भरे हुए।

फ्ढ़ा उनको, और देर तक सोच में पड़ा दांतों में जैसे उण्गली दबाए.... 

हैरान-सा

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 30, 2021 at 5:53am

आदरणीय सौरभ पांडेय जी , सभी दोहे उच्च कोटि के है पर निम्न वाले की तो बात ही निराली है। कितना कुछ बोल गया यह दोहा।
सूरज कैसे देखिए, औंधा पड़ा उदास
जुगनू की लफ्फाजियाँ, हुई प्रतीची खास। .
बहुत बहुत बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 30, 2021 at 12:23am

आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने छांदसिक रचना पर अपना समय दिया, इस हेतु हृदयतल से आभार. एक दोहे को छोड़, सबके इंगित शृंगारिक हैं. वैसे, छोड़ना तो उसे भी नहीं है. वह भी विशिष्ट भावबोध का ग्राही है. 

आदरणीय, जहाँ तक 'उद्भाव' शब्द की व्युत्पत्ति का प्रश्न है, तो इसका उद्भव 'भाव' में 'उत्' उपसर्ग लगने से संभव होता है. जिसका अर्थ है, विशिष्ट एवं परिष्कृत भाव. अवश्य ही यह शब्द 'उद्भव' से प्रच्छन्न है. जिसका अर्थ 'भव' अर्थात 'होने' से परिभाषित होता है. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 30, 2021 at 12:07am

आदरणीय समर साहब, प्रस्तुति पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद.

दोहे रुचिकर लगे, यह आश्वस्त करता है. एक को छोड़ सबके इंगित शृंगारिक हैं. 

//ये भाव कुछ जाना पहचाना सा लगा,आप ही की किसी पुरानी ग़ज़ल में है शायद//

'शायद' ने पंक्ति से निस्सृत होते भ्रम की तीव्रता कम कर दी. 

यह तो भाव विशेष के शाब्दिक होने की दशा है. दिशा, काल, परिस्थितियाँ भले एक हों, भावबोध की भिन्नता ही रचना की बुनावट का कारण बन जाती हैं. 

शुभ-शुभ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
5 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
6 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service