For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ तुम्हारी वंदना में गुन गुनाना चाहते हैं .
आरती के दीप नूतन फिर सजाना चाहते हैं.

छल छलाती जाह्नवी अमृत परसने फिर लगे.
मोक्ष की अवधारणा का सच बताना चाहते हैं.

जल नहीं अमृत समझकर पान नित करते रहें.
फिर वही पावन धरोहर हम बनाना चाहते हैं.

तट तुम्हारे तीर्थ पावन क्यों बदल इतने गए.
फिर वही गौरव पुराना हम दिलाना चाहते हैं.

धन्य उद्गम धाम गोमुख धन्य हिम मंडित शिलाएं.
आस्था के बीज नूतन फिर उगाना चाहते हैं.

कामना है तप नया कोई भागीरथ कर सकें.
आज जनजन को यही अनुभव कराना चाहते हैं.


Views: 406

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on April 23, 2012 at 2:52pm

आदरणीय दया शंकर जी आपको यहाँ देख कर अच्छा लगा
ग़ज़ल की सुन्दर कहन और शिल्पगत कसाव ने मुग्ध कर दिया

ह्रदय तल से बधाई स्वीकारें 

Comment by AVINASH S BAGDE on April 23, 2012 at 11:31am

तट तुम्हारे तीर्थ पावन क्यों बदल इतने गए.

फिर वही गौरव पुराना हम दिलाना चाहते हैं.....
सुन्दर आह्वान दयाशंकर पाण्डेय जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2012 at 8:21pm

जल नहीं अमृत समझकर पान नित करते रहें.
फिर वही पावन धरोहर हम बनाना चाहते हैं.

आदरणीय भावना को शब्दों में क्रमबद्ध कर की गयी सुन्दर कामना. बधाई.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 22, 2012 at 1:50pm

तट तुम्हारे तीर्थ पावन क्यों बदल इतने गए.
फिर वही गौरव पुराना हम दिलाना चाहते हैं.

धन्य उद्गम धाम गोमुख धन्य हिम मंडित शिलाएं.
आस्था के बीज नूतन फिर उगाना चाहते हैं.

कामना है तप नया कोई भागीरथ कर सकें.
आज जनजन को यही अनुभव कराना चाहते हैं.

बहुत सुन्दर आह्वान और कामना ..माँ गंगे सदा अमृतजल से जीवन देती रहें ..आओ इन्हें बचाएं 

भ्रमर ५ 



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on April 22, 2012 at 1:34pm

आदरणीय दयाशंकर पाण्डेय जी आपका इस मंच पर होना हमारे लिए गौरव की बात है| एक सुन्दर कामना के साथ लिखी गई यह रचना  अपनी भावनाओं को संप्रेषित करने में पूरी तरह से सक्षम रही है|

ढेर सारी बधाइयां कबूल करें|

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 21, 2012 at 8:38pm

परमादरणीय दयाशंकरजी, आपको इलाहाबाद के मंच और गोष्ठियों में जब साक्षात् काव्य पाठ करते सुना तो मैं सही कहिये रोमांचित हो गया था.  सनातनी और पौराणिक बिम्बों को आप स्वर दे कर वर्त्तमान पीढ़ी के लिये बहुत कुछ दे रहे हैं. 

ग़ज़ल की बह्र को जिस संयत और विशिष्ट ढंग से आपने निभाया है तथा जिन भावों को आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल संप्रेषित करती है वह अपने आप पर आश्वस्ति के भाव जगाना सिखाती है. 

आपकी सादर उपस्थिति मंच के लिये प्रभा है.

सादर

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 21, 2012 at 11:34am

तट तुम्हारे तीर्थ पावन क्यों बदल इतने गए.
फिर वही गौरव पुराना हम दिलाना चाहते हैं.

bahut sundar bhav, badhai mahoday.

Comment by MAHIMA SHREE on April 21, 2012 at 10:17am
धन्य उद्गम धाम गोमुख धन्य हिम मंडित शिलाएं.
आस्था के बीज नूतन फिर उगाना चाहते हैं....
हरेक पंक्तियाँ लाजवाब ...बधाई आपको

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 21, 2012 at 10:14am

कामना है तप नया कोई भागीरथ कर सकें.
आज जनजन को यही अनुभव कराना चाहते हैं.


आदरणीय दया शंकर पाण्डेय जी , खुबसूरत ख्याल के साथ अच्छी ग़ज़ल आपने कही है, दाद कुबूल करें |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 21, 2012 at 9:34am

तट तुम्हारे तीर्थ पावन क्यों बदल इतने गए.
फिर वही गौरव पुराना हम दिलाना चाहते हैं.

दया शंकर पाण्डेय जी जल प्रदूषण को इंगित करती आपकी यह अप्रतिम रचना बहुत भाई वो पहले जैसे पावन नदी तट और स्वच्छ जल अब कहाँ ....बहुत सुन्दर भाव 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service