For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुल जा सिम सिम बंद हो जा सिम सिम –दुकान हो या कार्यालय बंद करना,कराना,या खुलवाना,यह तमाशा भारत बंद के मौके पर देखने या दिखाने का मधुर दृश्य दृष्टिगोचर होता है|

                भारत बंद हम भारतीयों का राष्ट्रिय त्यौहार है. पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए, और हमें तो भारत बंद कराने के लिए एक सरकार की टेढ़ी चाल का इंतजार रहता है|यह त्यौहार प्रति वर्ष किसी भी महीने में मनाया जा सकता है|सरकार को भारत बंद को राष्ट्रिय त्यौहार घोषित कर देना चाहिए, क्योंकि प्रायः राजनैतिक पार्टियों में ही इस प्रकार की क्षमता विकसित होती है जो भारत बंद जैसा क्रांतिकारी कार्य संपन्न करा सके| भारत बंद मनाने कि घोषणा के साथ प्रत्येक मध्यम वर्गीय अपने जरूरतों का सामान पहले खरीद कर रख लेता है|गरीब आदमी बेचारा बेचारा ही रहकर मुँह ताकता रहता है| इस दिन नगर की सारी दुकाने बंद रहती है.किराना से लेकर खोमचे वाले तक इस त्यौहार में शरीक होते हैं.सरकारी दफ्तर,प्राइवेट संस्थानों में कार्य करने वाले अपने ऑफिस,को बंद कराने के लिए बंद के आयोजकों को निमंत्रण भेजते है की, आइये हमें भी छुट्टी दिलवाइए|भारत बंद पर कुछ संस्थान जैसे बैंक बीमा आदि के कर्मचारियों को आकस्मिक अवकाश का सुख प्राप्त होता है| अधिकांशतः यह देखने में आया है की  इस त्यौहार को मनाने का दिन विपक्ष पार्टी के द्वारा तय किया जाता है.परन्तु इसका पूरा आनंद पक्ष एवं विपक्ष दोनों मिलकर उठाते है|सत्ता पक्ष के लोग गली गली मोहल्ले मोहल्ले में घूम घूम कर लाउडस्पीकर एवं डंडे लेकर बंद हुई दुकानों को खुलवाते हैं|विपक्ष के लोग पत्थर फेंक कर उन दुकानों को फिर से बंद करवाते हैं| वीरता दिखाने वाले संस्थान के शीसे कुछ वीर टाईप के शरारती तत्वों के द्वारा तोड़ दिए जाते हैं,परिणाम स्वरुप कहीं सुख कहीं दुःख का वातावरण बन जाता है| कभी कभी दुकानों के बंद करने और खुलवाने में हंगामा हो जाता है, और दुकानें लुट ली जाती है.जिसका पूरा फायदा पक्ष विपक्ष के साथ आम जनता को भी मिलाता है| रस्ते का माल सस्ते में और सस्ते का माल रस्ते में बिकने लगता है|इस त्यौहार में बहुत से रमणीक दृश्य भी देखने को मिलते हैं.बंद के दौरान हाथ में डंडा लेकर दौड़ती पुलिस,उनके आगे आगे भागते नौजवान, कुत्ते बिल्ली का खेल खेलते मनभावन लगते हैं|नवजवानों की  भीड़ गली कुचे में समां जाती है, आस पास खड़े बड़े बुजुर्ग को पुलिस के डंडों का कोप भाजन बनना पड़ जाता है.बेचारे बड़े बुजुर्ग अपनी बुजुर्गियत का रोना डंडे खाने के साथ रोते हैं, पर हाय रे भावना प्रूफ पुलिस जिस पर किसी प्रकार की भावनाओं का कोई प्रभाव नहीं होता. दुकानों के लुटने और लुटवाने में प्रायः पुलिस का कोई योगदान नहीं होता, ये हम कहते है| आप क्या सोचते हैं| ये आप जाने? हमें तो पुलिस के डंडे से सदा ही डर लगता है| लुटती हुई दुकान का मालिक की  गुहार सुन पुलिस वाले दौड कर आ जाते हैं|ऐसा हिंदी फिल्मों में कभी नहीं होता| लुटेरे तो भाग जाते हैं, पर दुकान का व्यारा न्यारा हो जाता है| इस त्यौहार के लाभ शहर के हर गली मोहल्ले में दिखता है| लूटे हुए मॉल सस्ते दामों में  बिकते हैं| जिसका फायदा समाज के सभी वर्ग के लोग उठाते हैं|अतः भारत बंद हम भारतियों का महत्वपूर्ण त्यौहार है सही अर्थों में यह राजनीतिकों का त्यौहार है, परन्तु आम जनता इसमे शरीक होकर कौमी एकता का परिचय देती है| इस त्यौहार के दूसरे दिन सारे अखबारों में छपा रहता है कि अमुक अमुक जगह भारत बंद हर्षोल्लास से मनाया गया|विपक्ष तो इस त्यौहार को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भी बंद का आयोजन कर सकते हैं|उनका कहना है की  सत्ता में आते ही हम भारत बंद पर पुलिस के डंडे खाने वालों को बंद संग्राम सेनानी घोषित कर उन्हें पेंसन देने कि योजना पर काम करेंगे|

Views: 482

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 30, 2012 at 4:07pm
आदरणीय उमा शंकर जी, सादर 
भारत बंद , राष्ट्रिय अवकाश होना चाहिए.
करार व्यंग. बधाई. 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 30, 2012 at 9:38am

भाई उमा शंकर जी, भारत-बंद पर मधुर व्यंग्य .बधाई.

Comment by UMASHANKER MISHRA on May 28, 2012 at 11:10pm

रेखा जी ,राजेश कुमारी जी आपका आभार- बंदे का उत्साह वर्धन के लिए

शुक्रगुजार ओपन बुक ऑन लाइन का जो रचना को स्थान दिया

सभी को धन्यवाद

Comment by Rekha Joshi on May 28, 2012 at 9:39pm

badhai 

Comment by Rekha Joshi on May 28, 2012 at 9:38pm

umasanker ji ,bhaart band pr achchha vyng


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 27, 2012 at 5:26pm

बहुत अच्छा व्यंगात्मक आलेख ...बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
3 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service