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कोशिशों के समंदर से कामयाबी के मोती ढून्ढ लायेंगे 

हौसले की पतवार से कठिनाइयों का दरिया पार कर जायेंगे 
लक्ष्य के बादल को अपनी प्रतिभा के तीर से ऐसे चीर जायेंगे 
वर्षा के सामान हमारे गुण हर दिशा में बरस जायेंगे 

हिमालय की चोटियों की  तरह  ऋतू में शीतल  रहेंगे
क्रोध अहंकार और लालच को कभी नहीं अपनाएंगे 
सरिता के जल के  सामान हमेशा प्रयत्नरत  रहेंगे
किसी भी बाधा के आ जाने पर हम नहीं रुकेंगे 
आत्मविश्वास की मशाल से निराशा रूपी अंधकार को बुझाएंगे
गंगाजल की तरह शुद्ध हमारे आचरण को बनायेंगे 
खुद तो शुद्ध बनेंगे ही, औरों को भी पवित्र बनायेंगे
महापुरुषों और देवों  की तरह सदाचार अपनाएंगे
तारों की तरह टूटेंगे नहीं सूर्य की तरह सदा  जगमगायेंगे 
मौकों को तालेशेंगे नहीं , खुद को मौका बनायेंगे 
परजीवियों  की तरह रेंगेंगे नहीं , परिंदों की तरह उड़ के दिखलायेंगे
राष्ट्र को ही नहीं ,समूची मानवता को इस जीवन में कुछ नया देकर जायेंगे |
 

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Comment by Ajay Singh on June 1, 2012 at 9:39am

राष्ट्र को ही नहीं ,समूची मानवता को इस जीवन में कुछ नया देकर जायेंगे 

                really nice...

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 10:13pm

रोहित जी .. हौसलों से भरी रचना के लिए बधाई .. आदरणीय योगराज सर के कथन पे ध्यान दीजियेगा मुझे भी कुछ एसा लगा / प्रयास प्रशंसनीय है /

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on May 31, 2012 at 8:38pm
Comment by Rohit Singh Rajput on May 31, 2012 at 8:35pm

@rohit Dubey ji...BAat to apne gehrai se ki hai...kuch kar gujarne ki tammna ka srot pradan kar dia h apki in panktiyo ne....

Utpechha alankar jhalak raha h ...tarfiokabil h ap

Comment by Yogi Saraswat on May 31, 2012 at 4:40pm

प्रेरणा देती सुन्दर रचना , रोहित दुबे जी ! बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2012 at 2:55pm

आपने बहुत खूब समंदर बनाया है कोशिशों का ..............बधाई हो


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 31, 2012 at 12:11pm

भाई रोहित जी, बातें आपने बहुत ही सुन्दर कही हैं इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन कविता सपाट बयानी तक ही सीमित रह गई है, आप से इस से कहीं बेहतर की उम्मीद है. बहरहाल बधाई स्वीकार करें. 

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on May 31, 2012 at 10:58am

Rekha jee , Albela jee...........aap jaise guruon kaa ashirwad sath hai , to ab to isse bhi behtar praas karunga.......bahut bahut dhanyawad aapka

Comment by Rekha Joshi on May 31, 2012 at 10:05am

Rohit ji ,

परजीवियों  की तरह रेंगेंगे नहीं , परिंदों की तरह उड़ के दिखलायेंगे

राष्ट्र को ही नहीं ,समूची मानवता को इस जीवन में कुछ नया देकर जायेंगे |,bahut khub ,badhai
Comment by Albela Khatri on May 30, 2012 at 11:45pm

सम्मान्य रोहित दुबे योद्धा जी,  आपकी कविता  कोशिशों के समन्दर  को बाँच कर  सुकून मिला.
सचमुच एक योद्धा वाली बात है आपके  कहन में.

मज़ा आ गया ये बाँच कर

राष्ट्र को ही नहीं ,समूची मानवता को इस जीवन में कुछ नया देकर जायेंगे |
 
सादर

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