For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत: अब तो अपना भाल उठा... संजीव 'सलिल'

नवगीत:
अब तो अपना भाल उठा...
संजीव 'सलिल'
*
बहुत झुकाया अब तक तूने 
अब तो अपना भाल उठा...
*
समय श्रमिक!
मत थकना-रुकना.
बाधा के सम्मुख
मत झुकना.
जब तक मंजिल
कदम न चूमे-
माँ की सौं
तब तक
मत चुकना.

अनदेखी करदे छालों की
गेंती और कुदाल उठा...
*
काल किसान!
आस की फसलें.
बोने खातिर
एड़ी घिस ले.
खरपतवार 
सियासत भू में-
जमी- उखाड़
न न मन-बल फिसले.
पूँछ दबा शासक-व्यालों की
पोंछ पसीना भाल उठा...
*
ओ रे वारिस
नए बरस के.
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के.
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा...
*

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 22, 2012 at 4:45pm

 आदरणीय संजीव सर जी सादर प्रणाम
बहुत सुन्दर गीत रचा है आपने
बेहतरीन शब्दावली के साथ साथ प्रवाह मन में हलचल उठाने पर्याप्त है
बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by sanjiv verma 'salil' on December 22, 2012 at 4:09pm

pradeep ji

abhar. apse sahmat hoon.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 21, 2012 at 4:49pm

आदरणीय सलिल जी, सादर 

यदि खर पतवार हट जाए तो राष्ट्र उत्थान बगैर प्रयास के हो जाये.

बधाई 

Comment by sanjiv verma 'salil' on December 20, 2012 at 7:47am

सौरभ जी!
हौसला अफजाई का शुक्रिया.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2012 at 11:18pm

शब्द चित्र प्रस्तुत करें तो कविता होती है विधा चाहे कई हो. आचार्यजी, आपने इस नवगीत के जरिये माटी की गंध में रचे-बसे कृषक-श्रमिकों को जो मान दिया है वह आपकी सहृदयता को उजागर कर रहा है. शब्द-शब्द सुगढ तो हैं ही, रचना की अंतर्धारा आह्वान करती हुई है. गेयता और भाव संप्रेषण का सुन्दर उदाहरण है यह रचना.

सार्थक गीत के लिये आपको सादर प्रणाम.

Comment by MAHIMA SHREE on December 19, 2012 at 11:29am

ओ रे वारिस
नए बरस के.
कोशिश कर
क्यों घुटे तरस के?
भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया
उछल हरष के.
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की
बजा मंजीरा ताल उठा...

वाह !! बहुत ही सुन्दर गीत..आदरणीय संजीव सर... मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें /


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 19, 2012 at 10:57am

बहुत सुन्दर प्रवाह मान ओजपूर्ण नव गीत हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय सलिल जी 

Comment by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2012 at 10:32am

सीमा जी!
गीत प्रस्तुत करते ही आपके द्वारा पढ़कर तत्परता से दी गयी सटीक प्रतिक्रिया मन को प्रसन्न कर गयी. हार्दिक आभार.

Comment by seema agrawal on December 19, 2012 at 10:02am

बहुत सुन्दर और भाव समृद्ध नव गीत आदरणीय सलिल जी ......एक एक पंक्तिप्रवाहमान हो  अलख जगाती दिख रही है ......

.अनदेखी करदे छालों की 
गेंती और कुदाल उठा...हौसलों को दिशा देती हुंकार 

पूँछ दबा शासक-व्यालों की 
पोंछ पसीना भाल उठा.......वाह बहुत खूब स्वाभिमान से ओतप्रोत सन्देश 

भाषा-भूषा भुला
न अपनी-
गा बम्बुलिया 
उछल हरष के.
प्रथा मिटा साकी-प्यालों की 
बजा मंजीरा ताल उठा......इस प्रकार के शब्दों के प्रयोग गीत को जो सौन्दर्य और रोचकता प्रदान कर रहे हैं वो एक अनुभवी कलम ................................से ही निकल सकते हैं 

हार्दिक  बधाई एवं धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
8 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
20 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service