For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस यूँ ही.....काश ये हलके होते.....

बस यूँ ही.....काश ये हलके होते.....

 

बचपन के सपने

खुली आँखों के सपने

खुला आकाश 

आज़ाद पंछी

बहुत से उड़ गए

कुछ सफ़र पूरा कर

वापस पलकों पर आ गए 

 

और अब...

बंद आँखों में नींद कंहा

नींद कभी आई तो

सपने कंहा

कभी आये तो

उड़े कंहा,आकाश कंहा

 

जरूरतों के पिंजरे में कैद 

कभी निकले तो

ज़रा फडफडाये

पर मजबूरियों के पत्थर 

वक्त के हाथों में हमेशा दिखे 

और निशाना भी पक्का 

उड़ने से पहले ही लगे

 

पंछी फिर फडफडाये,गिरे

आज भी उन पत्थरों के नीचे दबे हैं 

काश , ये पत्थर जरा हलके होते तो

शायद ,छटपटाते ,हिलते हिलाते 

नीचे से निकल आते अधमरे से 

मगर सपने तो पंछी थे 

ये पत्थर तो पत्थर ही हैं

काश ये जरा हलके होते ..........पवन अम्बा ...

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on March 16, 2013 at 9:39am

 Saurabh Pandey ji...guru jano se mila ek ek comnt mere liye prasaad ki tarah hi hota hai......mai private service mei hun aur mujhe samaye bahut km mil pata hai........jitna bhi milta hai pura prayaas hota hai ki aap sb se kuch seekh saku.....dil se aabhaar aap sb kaa aur is group kaa.....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:14am

निर्दोष सपनों पर सांसारिक रौद्र विसंगति का वातावरण बनाता है. उनके संदर्भ में कुछ कहना अच्छा लगा है.. .

शुभ-शुभ

Comment by pawan amba on March 15, 2013 at 4:53pm

Yogi Saraswat JI....by Laxman Prasad Ladiwala JI....Dr. Swaran J. Omcawr JI....आप  सब का दिल  से हार्दिक धन्यवाद......

Comment by pawan amba on March 15, 2013 at 4:51pm

आप  सब का दिल  से हार्दिक धन्यवाद .... Dr.Prachi Singh JI....

Comment by pawan amba on March 15, 2013 at 4:50pm

 ram shiromani pathak JI....बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) JI  आप  सब का दिल  से हार्दिक धन्यवाद ....

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 12:04pm

Behad Khoobsurat

Swaran

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 2:26pm

सपनो को मध्यम बना वर्तमान छटपटाते जीवन पर सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई श्री पवन अम्बा जी 

Comment by Yogi Saraswat on March 14, 2013 at 12:15pm

जरूरतों के पिंजरे में कैद 

कभी निकले तो

ज़रा फडफडाये

पर मजबूरियों के पत्थर 

वक्त के हाथों में हमेशा दिखे 

और निशाना भी पक्का 

उड़ने से पहले ही लगे

सुन्दर अभिव्यक्ति


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 14, 2013 at 10:46am

हालात और ज़रूरतें मासूम सपनों को कैसे रौंद डालते हैं...ये छटपटाहट सुन्दरता से अभिव्यक्त हुई है

हार्दिक बधाई  

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 9:40pm

//काश , ये पत्थर जरा हलके होते तो

शायद ,छटपटाते ,हिलते हिलाते 

नीचे से निकल आते अधमरे से //

बहुत ही सुन्दर! अप्रतिम! आपने जो चित्र खींचा है आंखों से होता हुआ दिल में उतर गया।
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
2 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service