For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ - गीत

जानता हूँ जगत मुझसे दूर होगा 
पर तुम्हारे संग कुछ पल चाहता हूँ।

कठिन होगी यात्रा, राहें कँटीली,
व्यंजनायें मिलेंगी चुभती नुकीली,
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,

प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ।

स्वप्न देखूँ कब रहा अधिकार मेरा
रीतियों में था बँधा संसार मेरा,
आज मन जब खोलना पर चाहता है
गगन को उड़ना नहीं स्वीकार मेरा,

भर चुके अपनी उड़ानें अभी सब जब,
मैं स्वयं का इक नया कल चाहता हूँ।

सभी अपने भाग्य का लेखा निभाते,
किसे सच्चा या किसे दोषी बताते,
नियति का है खेल इसको कौन समझे,
द्वंद में ही उलझ कर रह गये नाते,

है भला अपराध क्यों जो साँझ बेला 
में अगर विश्राम-आँचल चाहता हूँ ।

मौलिक व अप्रकाशित

मानोशी

Views: 770

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 29, 2013 at 7:50pm

आदरणीया मानोशी जी ,

पंक्ति दर पंक्ति जिस भाव दशा को शब्द प्रस्तुति मिली है उसकी सांद्रता ह्रदय द्रवित करती जाती है... मर्मस्पर्शी गीत 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर .

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:00pm

वाह वाह.... ह्रदय की गहराइयों में उतर जाने वाले इस गीत के लिए हार्दिक बधाई आ0 मानोशी जी.... बहुत खूबसूरत....

Comment by coontee mukerji on October 23, 2013 at 2:19pm

बहुत सुंदर प्रस्तुति.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 22, 2013 at 9:09pm

आदरणीया मानोशी जी, सादर प्रणाम! ---- 

//स्वप्न देखूँ कब रहा अधिकार मेरा

रीतियों में था बँधा संसार मेरा,
आज मन जब खोलना पर चाहता है
गगन को उड़ना नहीं स्वीकार मेरा,

भर चुके अपनी उड़ानें अभी सब जब,
मैं स्वयं का इक नया कल चाहता हूँ।//

  ----------------- बहुत सुन्दर गीत! सीधे दिल में जगह बनाती हृदयस्पर्शी रचना।  हार्दिक बधार्इ स्वीकारें।  सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on October 22, 2013 at 2:21pm

बहुत-बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत प्रस्‍तुति पर, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 22, 2013 at 10:16am

सम्बन्ध कोई हो हर सम्बन्ध का अपना एक विशिष्ट आंतरिक विन्यास होता है. इकाइयों के बीच पारस्परिक समझ होती है.

इकाइयों के उस विन्यास या उस समझ को सामाजिक या पारिवारिक मान्यताएँ अपने स्थापित साँचे या खाँचे में सहज रूप से स्वीकार कर लें, ऐसा हमेशा नहीं होता.
कौन समझेगा हमारी वेदना को
नहीं देखेगा जगत ये आँख गीली,

या,
आज मन जब खोलना पर चाहता है
गगन को उड़ना नहीं स्वीकार मेरा

लेकिन यह भी उतना ही सही है कि आपसी समझ का विस्तृत आकाश ही समस्त सम्बन्धों का आग्रही व्यवहार हुआ करता है.
भर चुके अपनी उड़ानें अभी सब जब,
मैं स्वयं का इक नया कल चाहता हूँ

अतः, सम्बन्धों को कोई सार्थक नाम मिले, न मिले, इकाइयाँ जिस भावदशा को जीती हैं, वह परस्पर आश्वस्ति की अति उच्च दशा हुआ करती है जो अपने चरमोत्कर्ष पर भावसमाधि की अनुभूति ही है.
प्यार अपना हम दुलारेंगे अकेले
बस तुम्हारे साथ का बल चाहता हूँ

लेकिन इस पारस्परिकता को निभा ले जाना सदा सहज नहीं हुआ करता है, चाहे वैधानिकता कितनी ही संतुष्ट क्यों न होती हो. इस असहजता के कई पहलू हुआ करते हैं. इन्हीं पहलुओं के सापेक्ष हुई यह रचना कई अभिव्यक्तियों का कोलाज बनाती चलती है. फिर भी रचना मात्र शाब्दिक नहीं होती. यहीं इस गीत का रचयिता सफल है.
सभी अपने भाग्य का लेखा निभाते,
किसे सच्चा या किसे दोषी बताते,
नियति का है खेल इसको कौन समझे,
द्वंद में ही उलझ कर रह गये नाते,

समर्पण के सान्द्र क्षणों में निवेदित होने की इन अनुभूतियों को बहुत ही सार्थक शब्द मिले हैं -
है भला अपराध क्यों जो साँझ बेला
में अगर विश्राम-आँचल चाहता हूँ

बहुत-बहुत बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया मनोशीजी.


एक बात:
शब्द द्वंद्व  गलती से द्वंद  टंकित हो गया है.

Comment by Manoshi Chatterjee on October 22, 2013 at 8:47am

सभी को इस गीत को पसंद करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 21, 2013 at 11:09pm

बहुत ही सुन्दर दिल को बहुत सुकून मिला आज आपका ये गीत पढ़कर | आपका आभार और आपके लिए शुभकामनाये |

Comment by विजय मिश्र on October 21, 2013 at 6:07pm
बहुत ही सुंदर भाव संजोये सफल शब्द रचना . प्रभावोत्पादक .साधुवाद मानोशीजी .
Comment by mohinichordia on October 21, 2013 at 7:07am

भर चुके अपनी उड़ाने अब्व्ही जब सब  मैं स्वयं का इक नया कल चाहता हूँ .  बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service