For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तान्या : उन खामोश क्षणों में

इन खामोश क्षणों में
चाहा था
तुमको न याद करूँ /
लेकिन
बरखा की बूँदो के साथ
मेरा मन
भीग  गया /
और याद आये वो बादल ,
जो आये , छाये
और लौट गए
बिन बरसे ही /
लेकिन
मन के आँगन में
फूटी एक नन्ही कोंपल
मुरझाई नहीं
कुछ ज्यादा हरी हुई /
और याद आया
वो सपना
जिसमे तुम थे
मै भी न था
क्योंकि
वह मेरी आँखों का ही सपना था /
और याद आई
वो सूनी, गरम दोपहरी
करती ख़ामोशी से
इंतज़ार इक आहट का /
पर कितने मौसम
बदल गए
नन्ही कोंपल भी
सूखी नहीं ,
वह सपना भी
ठहरा है पलकों पर
आँसू सा ,
अब भी
इस दिल को
हर पल इंतज़ार है
शायद उस आहट का /
फिर भी मैंने चाहा
इन खामोश क्षणों में
तुमको न याद करूँ
लेकिन बरखा कि बूंदों के साथ
मेरा मन भीग  गया ..............

मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'

Views: 514

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 10, 2013 at 2:38pm

इस मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद, आदरणीय अरविन्द जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 10, 2013 at 12:06pm

आदरणीय अरविन्द जी ...किसी को पा लेने की इच्छा में जो मधुरता है उसे पा लेने में नहीं ..बस ये कलि यूं ही हरी रहे ..सादर बधाई के साथ 

Comment by annapurna bajpai on November 9, 2013 at 2:03pm

आ0 अरविंद जी सुंदर रचना बधाई आपको । 

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 1:27pm

अंतर्मन को छूती इस अद्भुत रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरविन्द भाई जी....

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 10:57am

आदरणीय अरविंद भाई जी बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 8, 2013 at 8:41pm

बहुत अज़ीज़ से ज़ज्बात जो जुबां पर नहीं आते बस कविता में ही ढल अर्थ पाते हैं.....उनको संजोती हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.

हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 7, 2013 at 11:07pm

इस तरह की अभिव्यक्तियों की शृंखला सी बन रही है. यह अच्छा है.

शब्द की अक्षरियों पर विशेष ध्यान दिया करें.  

एक बात और:

भींगना वस्तुतः भीगना होता है. इ्से सुधार लें.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 3:12pm

Dost kya kahoon Man to mera bhi bheeg gaya.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service