For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत -- सियासती दावत

नूतन वर्ष में
नये -पुराने ,सपने
सियासती दावत में
फिर परसे जायेंगे  .
 
वह मन को भरमायेंगे
अतीत भुलायेंगे
नये कपडे ,पुराने
तन को पहनाएंगे
 
शक्कर में पगे हुये
शब्द शब्द बनावटी
ललना से फिसलकर 
प्रजा लुभायेंगे 
 
विजय कुरसी मिलेगी
अधर ,मुस्कान खिलेगी 
सिर पर नेताओं के 
श्वेत कलगी सजेगी
 
हाँ मन के है कारे
यह उजले पर वाले
फिर सरेआम अपना
पोस्टर लगवायेंगे। 
 
नित नये रंग होंगे
नित नये ढंग होंगे
संसद के कामकाज
दल कितने भंग होंगे ?
 
सपने भी सलोने है
जन जन को ढोने है
देश घर, बूढ़े अंस
भार कितना उठायेगे ।
**********

 - शशि पुरवार

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 10:15pm

आदरणीया प्राचीजी, इन विन्दुओं पर अवश्य चर्चा होनी चाहिये. शशिजी और हम सभी के साथ-साथ इस विधा पर लिखने वाले अन्य रचनाकारों को भी लाभ होगा.
सादर
 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 9:39pm

आ० शशि पुरवार जी ,

यह रचना नवगीत नहीं है...नवगीत के शिल्प पर कई रचनाओं में काफी बारीकी से चर्चा हुई है..

क्या मुख्य पंक्ति हर बंद के बाद दोहराई जा सकती है..

मुखड़ा किस मात्रिकता पर लिया गया है... 

क्या बंद मात्रिकता का निर्वहन करते हैं..या प्रवाह और अंतर्गेयता के लिए कुछ आतंरिक व्यस्था रखी गयी है..

क्या सार्थक बिम्ब समाहित किये गए हैं..

नवगीत किसी स्थिति का प्रस्तुतीकरण मात्र न होकर अपनी सोच/चिंतन को सकारात्मकता के साथ समाविष्ट करते हुए नयी दिशा भी दिखाता है...

आदरणीया इन कुछ बिन्दुओं पर आप इस अभिव्यक्ति को पुनः देख जाइए... फिर चर्चा को आगे बढाते हैं 

सादर.

Comment by shashi purwar on December 27, 2013 at 7:16am

नमस्ते सौरभ जी , बहुत दिनों से आपकी प्रतीक्षा कर रही थी कि कब आप आये और चर्चा आरम्भ हो , पर आप आये और चुपके से अदृश्य तीर चलाकर चले गए , बरहाल हम समझ गए  और जानते भी है , फिर भी हम चाहते है कि आप इस बारे में विस्तृत खुलकर , तकनिकी पक्ष पर आये , और इंगित करे किन  बन्दों में क्या कमी है …  व्यंग मिश्रित यह रचना एक नया प्रयोग  किया है।  वैसे हर रचना पर आपकी प्रतीक्षा रहती है , हमारा यह  मंच  बारीकियों को खुल कर चर्चा करके ही दूर करता है। आपका आना सार्थक चर्चा को जन्म  देता है पर चुप रह जाना। …  :)
सादर

Comment by shashi purwar on December 27, 2013 at 6:59am

 , वंदना जी , गिरिराज जी , सत्येन्द्र जी , कोणती जी , मीना जी , अनुपम जी , अविनाश जी , गोपाल जी , आप सभी मित्रो का तहे दिल से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:10am

आदरणीया शशि पुरवारजी, आपकी यह रचना कितना कविता है और कितना नवगीत, इसपर एक सार्थक बहस होनी चाहिये थी, जो देख रहा हूँ, नहीं हुई है. कारण कुछ भी रहा हो, नवगीत पर एक सार्थक बहस का अच्छा मौका इस मंच के उन सदस्यों ने गवाँ दिया है, जो नवगीत पर तमाम प्रश्न लिये बिना उत्तर के बैठे हैं.
सादर

Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 9:40pm

आ. शशि पुरवार जी नव वर्ष के उपलक्ष्य में  इस नव गीत के माध्यम से सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:45pm

बहुत सुंदर रचना.शुभकामनाएँ

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 5:24pm

सच कहा आपने अपने नवगीत के माध्यम से  सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बधाई आ0 शशि जी । 

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:22pm

आ० शशि जी बहुत बहुत बधाई सुन्दर नवगीत हेतु | सादर बधाई 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 23, 2013 at 11:44am
सपने भी सलोने है
जन जन को ढोने है
देश घर, बूढ़े अंस
भार कितना उठायेगे ।
**********

  शशि पुरवारजी :सुन्दर नव गीत,नूतन वर्ष में...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service