For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"माँ, तुम्हें एक खुशखबरी देनी थी। तुम नानी बनने वाली हो।"- बेटी ने अपनी माँ को बताया जिसकी पिछले महीने ही शादी हुई थी।
"बेटा, तुमने यह बात किसी को बताई तो नहीं है।"
"नहीं माँ, क्या हुआ?"
"बेटा, एक बार अल्ट्रासाउंड करवा लेती तो ठीक रहता। पता लग जाता घर का चिराग है या लड़की।"
"लेकिन माँ, यह तो पहला बच्चा है। ऐसी बातें क्यों सोच रही हो?"
"तुम्हारी भाभी भी यूँ ही माॅर्डन बातें किया करती थी। अब उसको दो लड़कियाँ हैं। बेटा, घर को चिराग देने वाली औरत का मान-सम्मान अपने आप ही बहुत बढ़ जाता है।"
"ठीक है माँ, बताओ मुझे अब क्या करना है?"
"तुम ये प्रेगनेंसी वाली बात किसी को भी मत बताना और जल्दी से एक बार घर आ जाओ।"- माँ ने बेटी को सीख देते हुए कहा।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 812

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 3:50pm
// आपसे क्वांटिटी की जगह क्वालिटी की उम्मीद रहती है//
आदरणीय गणेश सर जी, मुझे आपकी टिप्पणी पाठक की नहीं बल्कि आदेशात्मक लगी थी। मेरी मनसा केवल लेखन तक ही सीमित है।
अगर मेरी कोई बात आपको गलत लगी हो तो क्षमा चाहता हूँ हो सकता है मुझसे समझने में कोई कमी रह गई हो। आशा है आपका सहयोग यूँ ही बना रहेगा। सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 26, 2014 at 2:17pm

//रही बात ज्यादा मात्रा में लघुकथा भेजने की तो आदरणीय सर जी अगर ऐसा कोई नियम है तो आगे से ध्यान रखा जाएगा।//

आदरणीय विनोद जी, प्रतीत होता है कि आपको मेरी टिप्पणी पुनः पढ़ने की आवश्यकता है, उक्त टिप्पणी एक पाठक की है, जिसमे क्वालिटी की उम्मीद की गयी है, यह आवश्यक नहीं की पाठक की उम्मीद लेखक पूरी ही करे, सादर ।

Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 2:08pm
रचना पर अपनी पारखी नजर डालने के लिए सभी आदरणीय सुधीजनों का दिल से आभार।
Comment by विनोद खनगवाल on November 26, 2014 at 1:55pm
आदरणीय गणेश जी, रचना को समय देने के लिए आपका आभारी हूँ। मेरी रचनाओं में जो भी कमी लगे कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। कमियों का पता लगने के बाद ही तो मैं सुधार कर पाऊँगा।
रही बात ज्यादा मात्रा में लघुकथा भेजने की तो आदरणीय सर जी अगर ऐसा कोई नियम है तो आगे से ध्यान रखा जाएगा। आपके सानिध्य में रहकर कुछ सीखने की आशा है।
Comment by Hari Prakash Dubey on November 26, 2014 at 2:32am

 सुन्दर रचना ...बधाई आप को Vinod Khanagwal जी !

Comment by Meena Pathak on November 25, 2014 at 4:12pm

वाह री माँ की सीख ..................

आखिर कब तक चलेगा ये ...कब बदलेगी सोच 

चिराग तले अन्धेरा ...दुःख होता है सुन् कर ये सब ...............सार्थक लघुकथा हेतु बधाई आप को 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2014 at 11:47am

घर के चिराग की कामना अभी तक पढ़ी लिखी महिलाएं भी नहीं छोड़ पा रही | इस विडम्बना को दर्शाती सुंदर लघु कथा के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2014 at 10:50am

अधिकतर नारी ही नारी की जड़ें काटती हैं ऐसा बहुदा देख गया है जब तक नारी खुद नारी का सम्मान नहीं करेगी तो समाज को क्या मेसेज देगी ,,,कहानी का विषय बहुत अच्छा है .बहुत- बहुत बधाई .

Comment by Alok Mittal on November 25, 2014 at 8:05am

कब खत्म होगा ये कुरीतियाँ ....सुंदर कहानी आपकी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2014 at 9:35pm

आदरणीय विनोद जी, इस विषय पर बहुत बार आप भी पढ़ें होंगे और हम सब भी, सच कहूँ तो सपाट बयानी सी लगी यह प्रस्तुति, आपसे क्वांटिटी की जगह क्वालिटी की उम्मीद रहती है,  सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service