For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहाड़ी के बीच

**************************

ऊँची नीची पहाड़ी पगडंडियों में

बल खाती घुमावदार सड़कों के बीच

दिखती है एक चाय की दुकान

यह दुकान होती है

छोटे मोटे मकानों में

किसी भी पगडंडी पर

किसी खोखे जैसी दुकान

उस में चाय भी बनती है

आलू प्याज के बनते हैं पकौड़े भी

यहाँ कभी कभी टहलते हुये

होते हैं लोग इकट्ठा

करतें हैं अपने ऊँची चोटी पर बसे गाँव की बातें

इसी बीच इन्हीं दुकानों पर

वे कर लेते हैं अपने बेटे बेटी के रिश्ते भी पक्के

इन लोगों की कमर भी झुक जाती है बोझ उठाये उठाये

एक गैस का सिलेंडर कमर पर लादे 

पंहुचा देते हैं आलीशान भव्य होटलों में 

क्यों कि मोटर गाड़ी तो पहाड़ी पर जा नहीं सकती 

सारी चर्चायें होती हैं पर नहीं होती कोई भी चर्चा

खेतों में खपती ठंड में ठिठुरती माँ की

झाइयों से घिरी पत्नी की

बीमार रहते बच्चे की....

पहाड़ का जीवन होता ही है

मुश्किल.......

उसी पहाड़ी के बीच मेरा भी घर है

और है उसमें एक चाय की छोटी सी दुकान......

जिसमें बनते हैं आलू प्याज के पकोड़े भी

आइयेगा कभी ....

                        आभा

 अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 15, 2016 at 10:41pm

 इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

Comment by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:39pm
सुन्दर प्रस्तुति।हार्दिक बधाई आपको
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:21pm
वाह आदरणीया आभा सक्सेना जी ऐसा प्रतीत हुआ मानो कि किसी पहाड़ी पर बैठे सब नजारा अपनी आंखों से देख रहे हैं। बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई कबूल करें । सादर ।
Comment by amita tiwari on September 14, 2016 at 8:14pm

वाह! आभा  जी क्या खूब चित्र खींचा है .मैं भी पहाड़ी हूँ सो अच्छी तरह जानती हूँ इन चाय की दुकानों को ...बहुत पकौड़े जलेबी  बेसन बर्फी खाई  है .  बहुत सुंदर ......

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on September 14, 2016 at 3:10pm
आदरेया आभा जी आपने बहुत ही खूबसूरत शब्द चित्र बनाया है दिली दाद है।
Comment by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 1:20pm

आदरणीय समर कबीर जी नमस्कार ,

बहुत बहुत आभार आपका मेरी कविता  को पसंद  करने के  लिए ...क्यों कि मैं पहाड़ों के  बीच  रहती  हूँ  इसलिए  मुझे पहाड़ों  का मुश्किल  भरा जीवन  कैसा  होता है मालूम  है ..

Comment by Samar kabeer on September 14, 2016 at 12:00pm
मोहतरमा आभा सक्सेना जी आदाब,बहुत बढ़िया कविता है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
10 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service