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मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है- शिज्जु शकूर

2122 2122 2122 212

मखमली यादों में लिपटी ज़िन्दगानी और है

वो लड़कपन खूब था अब ये  जवानी और है

 

आसमाँ सर पर उठाकर तूने साबित कर दिया

तेरा किस्सा और कुछ था हक़बयानी और है

 

मैं छुपाता हूँ जहाँ से दर्द-ए-दिल ये बोलकर

हिज़्र की तासीर कुछ मेरी कहानी और है

 

वस्ल की बातें वो लमहे भूल भी जाऊँ मगर

मेरे दिल में इक मुहब्बत की निशानी और है

 

आबले हाथों के मुझसे कह रहे हैं फूटकर

कामयाबी और शय है जाँफ़िशानी और है

 

(हक़बयानी- सच्ची बात कहना, हिज्र- विरह, तासीर- असर,

वस्ल- मिलन, आबले- छाले, जाँफ़िशानी- कड़ी मेहनत)

 


-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on November 28, 2016 at 2:47pm

मेरी ग़ज़ल को समय देने के लिए आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, आपकी मुहब्बत ही मेरी ताक़त है. इल्तिज़ा है इसी तरह हौसलाअफ़्ज़ाई करते रहें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2016 at 7:08pm

बहुत  सुंदर  ग़ज़ल  बहुत  बहुत  मुबारकबाद  शिज्जू  भैया 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 9, 2016 at 6:28pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आदरणीय शिज्जू जी दाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 3:06pm
आदरणीय शिज्जू साहब खूबसूरत एवं बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 8, 2016 at 2:35pm

बहुत  खुबसूरत  ग़ज़ल  के लिए बधाई आ शिज्जू 'शकूर' जी !

Comment by नाथ सोनांचली on October 8, 2016 at 5:42am
बेहतरीन गजल आदरणीय, बधाई
Comment by Samar kabeer on October 7, 2016 at 11:50pm
जनाब शिज्जु शकूर जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबरकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 7, 2016 at 8:57pm

वाह्ह्ह  वाह  बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है शिज्जू भैय्या शेर दर शेर दाद क़ुबूल फरमाएं 

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 7, 2016 at 8:42pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी बहुत सूंदर ग़ज़ल है .....कुछ नए शब्दों का प्रयोग भी सीखा मैंने आपकी रचना में।बहुत  बधाई।   सादर। 

Comment by PRAMOD SRIVASTAVA on October 7, 2016 at 8:35pm

शेर दर शेर वाह वाह वाह। मै बधाई ।

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